“फिर मैंने दृष्टि की, और देखो, वह मेमना सिय्योन पहाड़ पर खड़ा है, और उसके साथ एक लाख चौवालिस हजार जन हैं, जिनके माथे पर उसका और उसके पिता का नाम लिखा हुआ है.” (प्रकाशितवाक्य १४:१)
धर्मशास्त्र एक विशिष्ट लोगों के समूह को प्रस्तुत करता है. वे १४४,०००. यह समूह स्वर्ग में बहुत ही विशेष आदर को पाता है. वह कारण जिससे वे १४४,००० विशिष्ट आदर को पाते हैं इस प्रकार स्पष्ट किया गया है:
“ये वे हैं जो स्त्रियों के साथ अशुद्ध नहीं हुए, पर कुँवारे हैं; ये वे ही हैं की जहाँ मेमना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं; ये तो यहुवाह के निमित्त पहले फल होने के लिए मनुष्यों से मोल लिए गये हैं. उनके मुँह से कभी झूठ न निकला था, वे निर्दोष हैं.” (प्रकाशितवाक्य १४:४,५)
कभी भी, किसी दूसरे समूह का वर्णन इस
प्रकार नहीं किया गया है. उनका अनुभव है जो १४४,००० को एक विशिष्ट बनाता है.
प्रतिदिन अपने मुक्तिदाता को अपने आप का समर्पण के द्वारा, ये १४४,००० शुद्ध और
निर्मल किये गए हैं. पवित्रता के साँचे में उनका चरित्र ढाला और रूप दिया गया है
और वे पवित्र प्रतिरूप को प्रतिबिम्बित करते हैं. वे पिता और पुत्र के साथ एक है.
उनके विचार, उनकी पसन्द और नापसन्द, उनके मूलभाव और लक्ष्य पवित्रता में एक हैं.
वे उसमें पूर्ण है.
ये १४४,००० “कुँवारे” कहलाते हैं क्योंकि उनके पास एक शुद्ध विश्वास है. उनके हृदय में शैतानिक झूठ और मिथ्या सिद्धान्त, शुद्ध स्वर्गीय सच्चाइयों के द्वारा परिवर्तित कर दिए गये हैं. उनके मुँह से छल नहीं निकलता है. अपितु, उनके शब्द, मुक्तिदाता के समान जीवन में जीवन का स्वाद हैं. यहुवाह की इच्छा के लिए उनके पूर्ण समर्पण के कारण, वे पवित्र मष्तिष्क और इच्छा में एक हैं. इसलिए, यह उनका सर्वोच्च आदर और विशेषाधिकार है की सारे संसार में और अनंतकाल में “जहाँ मेमना जाता है वे उसके पीछे हो लेते हैं.”
तौभी मेमने के पीछे चलना स्वर्ग में आरम्भ नहीं होता है. स्वर्ग में मेमने के पीछे चलने के आदर को पाने के लिए, वे पृथ्वी पर ही उसके पीछे चलना आरम्भ कर देते हैं. लगभग ६,००० वर्षों से स्वर्गीय उर्जा और स्त्रोत अज्ञानता और पाप में नाश हो रही आत्माओं के लिए प्रकाश और सत्य को लाने के लिए केन्द्रित है. जबकि पृथ्वी पर १४४,००० आत्माओं के उद्धार के लिए स्वर्ग के साथ सहयोग कर रहे हैं. उन्होंने यहुवाह के प्रेम को पापियों में बाटा है और दूसरों में सत्य को लाने के लिए स्व-बलिदान को भी दिया है.
इस कार्य में १४४,००० एलियाह के विरोधी हैं. एलियाह का कार्य १४४,००० द्वारा किये गये कार्य का प्रतीक है.
भीषण राष्ट्रीय संकट में, एलियाह राजा
और नागरिकों के सामने अकेला इस बुलाहट के साथ खड़ा हुआ कि पश्चाताप करो और
सृष्टिकर्ता की उपासना के लिए लौट आओ. उसने
लोगों के सामने जीवन और मृत्यु को प्रस्तुत किया और उनसे जीवन की चुनने की गुहार
की. यह १४४,००० का कार्य है.
धर्मशास्त्र प्रगट करता है कि अंतिम लड़ाई तब ही समाप्त होगी जब उपासना होगी, क्योंकि जब कोई उपासना करता है तो प्रगट हो जाता है कि वह किसकी उपासना कर रहा है. एलियाह के धर्म रहित इस्राएल के सामने खड़े होने के समान, १४४,००० सारे संसार के सामने इस बुलाहट के साथ खड़े होंगे कि पश्चाताप करो और सृष्टिकर्ता की उपासना सृष्टि के चन्द्र-सौर कैलेण्डर द्वारा निर्धारित सातवे दिन सब्त पर करने के लिए लौट आओ.
उनका सन्देश ऊँची पुकार के रूप में पृथ्वी के एक कोने से दूसरे कोने तक सुनाई देगा.
“यहुवाह से डरो और उसकी महिमा करो, क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुँचा है; और उसका भजन करो, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जल के सोते बनाए.” (प्रकाशितवाक्य १४:७)
एलियाह के दिनों के समान यह भी एक अत्यन्त अलोकप्रिय सन्देश है. संसार की शक्तियाँ उनकी वैश्विक निरंकुशता के प्रतिरोध को समाप्त करने के लिए एक साथ जुड़ जाएँगी., धर्मशास्त्र घोषणा करता है कि अन्त के दिनों में पृथ्वी की शक्तियाँ पशु के प्रतीक के नीचे:
“उसे उस पशु की मूर्ति में प्राण डालने का अधिकार दिया गया कि पशु की मूर्ति बोलने लगे, और जितने लोग उस पशु की मूर्ति की पूजा न करें, उन्हें मरवा डाले. उसने छोटे-बड़े, धनी-कंगाल, स्वतंत्र-दास सब के दाहिने हाथ या उनके माथे पर एक एक छाप करा दी, कि उसको छोड़ जिस पर छाप अर्थात् उस पशु का नाम या उसके नाम का अंक हो, अन्य कोई लेन-देन न कर सके.” (प्रकाशितवाक्य १३:१५-१७)
लगभग समस्त संसार का विरोध होने पर भी, ये १४४,००० अपनी चेतावनी की आवाज उठाएँगे.
“जो कोई उस पशु और उसकी मूर्ति की पूजा करे, और अपने माथे या अपने हाथ पर उसकी छाप ले वह यहुवाह के प्रकोप की निरी मदिरा, जो उसके क्रोध के कटोरे में डाली गई है पीएगा.” (प्रकाशितवाक्य १४:९,१०)
आत्माओं में मुक्तिदाता ये १४४,००० के
प्रेम को बाटेंगे . अपने
आप के खतरों के मूल्यों के बावजूद, ये स्वर्ग के साथ अन्तिम पीढ़ी के लिए पृथ्वी पर
अन्तिम चेतावनी की घोषणा करने के लिए जुड़ेंगे. वे आत्माओं के उद्धार में यहुशुआ के
सहयोगी होंगे और उसकी ओर से उनके लिए प्रतिफल:
“हम यहुवाह की सन्तान हैं; और यदि सन्तान हैं तो वारिस भी और यहुशुआ के संगी वारिस हैं...” (रोमियो ८:१७)
यहुशुआ के संगी वारिस! स्वर्गीय राजा के पुत्र! विश्वासयोग्यता के लिए कैसा प्रतिफल! यहुशुआ गिरी हुई पीढ़ी को उन प्रत्येक बिन्दुओं पर जहाँ आदम गिरा था छुटकारा देकर दूसरा आदम बन गया:
“क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई, तो मनुष्य ही के द्वारा मरे हुओं का पुनुरुथान भी आया. और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसे ही यहुशुआ में सब जिलाए जाएँगे.” (१कुरन्थियो १५:२१,२२)
ये १४४,०००, अपने आप के पूर्ण समर्पण के द्वारा, मुक्तिदाता के साथ एक ऐसी सहभागिता में प्रवेश करेंगे जो कोई और बाँट नहीं सकता. चूँकि यहुशुआ दूसरा आदम है, वे दूसरी हव्वा हैं, मेमने की दुल्हन. जैसे जैसे यहुवाह का आत्मा उनके हृदयों में प्रवेश करता है कि उनमें पश्चाताप को लाए, ये १४४,००० मेमने की दुल्हन के रूप में उसके साथ अपनी आवाज मिलाते हैं, जो सभी को पश्चाताप और आज्ञाकारिता के लिए प्रेरित करता है.
“आत्मा और दुल्हन दोनों कहती हैं ‘आ!’ और सुनने वाले भी कहें ‘आ!’ जो प्यासा है वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले.” (प्रकाशितवाक्य २२:१७)
यहुवाह की इच्छा और मस्तिष्क में पूर्णत: प्रवेश करने पर ये १४४,००० ने अपनी सर्वोत्तम उर्जा को मुक्तिदाता के साथ आत्माओं के उद्धार में लगाया है. पृथ्वी पर उसके साथ एक होने के कारण उनका सम्बन्ध मृत्यु के बाद भी निर्विघ्न रूप से बना रहता है. ये ही वे विश्वासी जन हैं जो मृत्यु को देखे बिना स्वर्ग में ले जाये जायेंगे और जो प्रिय सम्बन्ध पृथ्वी पर आरम्भ हुआ अनन्तकाल तक बना रहेगा. अनन्तकाल के खजाने छुटकारा पाए हुओं के लिए खुले रहेंगे, परन्तु ये १४४,००० दुल्हन के रूप में मुक्तिदाता की विशेष निकटता को पाएंगे. उनके प्रेम, आनन्द, और कृतज्ञता से भरे हुए ह्रदय गीत की अभिव्यक्ति को पाएंगे:
“वे सिंहासन के सामने एक नया गीत गा रहे थे. और उन एक लाख चौवालिस हजार जनों को छोड़ जो पृथ्वी पर से मोल लिए गये थे, कोई वह गीत न सीख सकता था.” (प्रकाशितवाक्य १४:३)
यह गीत उनके अनुभव का गीत है; एक ऐसा अनुभव जिसे अन्य किसी जनसमूह ने कभी न पाया होगा. वे अधिक प्रेम करते है क्योंकि वे अधिक क्षमा किये गये हैं और स्वर्ग में उनका प्रतिफल बड़ा है. उन्होंने पृथ्वी को यहुवाह के कोप के उन्डेले जाते समय अंतिम सात विपत्तियों में भूखमरी महामारी, भूकम्प से नाश होते हुए देखा, लेकिन उन्होंने मुक्तिदाता की वाचा की शक्ति को सिद्ध किया.
“इसलिए मैं भी तुझे परीक्षा के उस समय बचा रखूँगा जो पृथ्वी पर रहने वालों के परखने के लिए सारे संसार पर आने वाला है.” (प्रकाशितवाक्य ३:१०)
वे वेदना की भट्टी में शुद्ध और निर्मल किये गये हैं. उनका चरित्र पाप के एक भी दाग या धब्बे के बिना, अब पूर्णत: अपने बनाने वाले के प्रतिरूप को प्रतिबिम्बित करता है. अब, उन्हें आदर दिया गया है:
“उसे मैं एलोहीम के मन्दिर में एक खंभा बनाऊंगा, और वह फिर कभी बाहर न निकलेगा.” (प्रकाशितवाक्य ३:१२)
यह आदेश एक प्रतिबन्धात्मक आज्ञा नहीं है, की इन १४४४,००० को तत्काल यहुवाह की उपस्थिति को छोड़ने नहीं दिया जाएगा. लेकिन, यह कथन उनके एक विशेष दर्जे का है: ये १४४,००० हमेशा पिता की उपस्थिति में प्रवेश कर सकेंगे. सभी युगों के छुटकारे के द्वारा, इन १४४,००० को अधिकार दिया जाएगा “जीवन के पेड़ में से ..फल खाने दूँगा.” (प्रकाशितवाक्य २:७) उन्हें दिया जाएगा “ उसे एक श्वेत पत्थर भी दूँगा, और उस पत्थर पर एक नाम लिखा हुआ होगा, जिसे उसके पाने वाले के सिवाय और कोई ना जानेगा.” (प्रकाशितवाक्य २:१७) यह नया नाम उनके व्यक्तिगत चरित्र का प्रतिबिम्ब है जो पवित्र शोधक के द्वारा चमकाया और निर्मल किया गया है.
और यही पर्याप्त नहीं है, दूल्हे का प्यार और उदारता यहाँ रूकती नहीं है. इन १४४,००० के लिए उसकी दुल्हन जो अपने प्रिय के साथ आत्माओं के उद्धार का कार्य कर रही है, एक और प्रतिफल है जो बाकी सबसे अधिक बड़ा है:
“जो जय पाए मैं उसे अपने साथ अपने सिंहासन पर बैठाऊंगा, जैसे मैं भी जय पाकर अपने पिता के साथ उसके सिंहासन पर बैठ गया.” (प्रकाशितवाक्य ३:२१)
उनके लिए जो पृथ्वी पर मुक्तिदाता के
पीछे चले हैं आदर और सदा के लिए उपरोक्त दरबार में उसके पीछे चलने के विशेषाधिकार
की नियति उनका इंतजार कर रही है. जबकि ये १४४,००० एक विशेष समूह है, यह एकमात्र
समूह नहीं है. वे सभी जो इस संख्या में सम्मिलित होना चाहते हैं उनके पास मौका है
कि वे पवित्र व्यवस्था की आज्ञाकारिता के लिए अपने आप को समर्पित करें ताकि वे
१४४,००० के सदस्य हो सकें. यह किसी भी ऐसे “कार्य” के द्वारा सम्भव नहीं है जो वे
करते हैं. कोई भी जो मूसा और मेमने के गीत गाता है यह दावा नहीं कर सकता की उसने अपनी क्षमता से
स्वर्ग को प्राप्त कर लिया है.
धर्मशास्त्र यह प्रश्न करते हुए मेमने और उसकी दुल्हन के निकट सम्बन्धो को प्रस्तुत करता है,
“यह कौन है जो अपने प्रेमी पर टेक लगाये हुए जंगल से चली आती है?” (श्रेष्ठ्गीत ८:५)
ये १४४,००० यहुशुआ की दुल्हन हैं क्योंकि उन्होंने अपनी इच्छा को उसे समर्पित कर दिया है; उन्होंने सभी वाचाओं पर विश्वास किया है. वे उसकी शक्ति में मजबूत बन गये हैं; उसकी धार्मिकता अब उनकी है.
स्वर्गीय दूल्हे की आवाज प्रेमपूर्वक दुल्हन के कानों में आती है:
“हे मेरी प्रिय, तू सर्वांग सुन्दरी है; तुझमें कोई दोष नहीं.” (श्रेष्ठ्गीत ४:७)
आज ही अपने आप को मुक्तिदाता को समर्पित करिये,
उसी के पीछे चलिए आज कल और ... सर्वदा.