धर्मशास्त्र संसार के अन्त की चेतावनियों से भरा हुआ है. ये विषय महामारी, हत्या और अंधाधुंध विनाश का एकदम सजीव चित्रण प्रस्तुत करते हैं जो यहुशुआ के दूसरे आगमन के ठीक पहले होगा. धर्मशास्त्र में बहुमूल्य वाचाएँ उनके लिए है जो इस संकट के समय बचाए जाएँगे- “तब ऐसे संकट का समय होगा, जैसा किसी जाति के उत्पन्न होने के समय से लेकर अब तक कभी न हुआ होगा, परन्तु उस समय तेरे लोगों में से जितनों के नाम यहुवाह की पुस्तक में लिखे हुए हैं वे बच निकलेंगे.” (दानिएल १२:१)
प्रकाशितवाक्य संसार के अन्त के समय होने वाले विनाश और छुटकारे दोनों का वर्णन करता है.
“फिर मैंने एक और स्वर्गदूत को जीवते एलोहीम की मुहर लिए हुए पूरब से ऊपर की ओर आते देखा, उसने उन चारों स्वर्गदूतों से जिन्हें पृथ्वी और समुद्र की हानि करने का अधिकार दिया गया था ऊँचे शब्द से पुकारकर कहा जब तक हम अपने एलोहीम के दासों के माथे पर मुहर न लगा दें, तब तक पृथ्वी और समुद्र और पेड़ों को हानि न पहुँचाना.” (प्रकाशितवाक्य ७:२,३)
वे जिनके माथे पर
यहुवाह की मुहर होगी वे आने वाले विनाश से बचाए जाएँगे. शैतान और यहुवाह के बीच
युद्ध की शर्त पवित्र मुहर पाने वालों की सुरक्षा और जिनके पास नहीं है उनके विनाश
की गारन्टी देता है.
मुहरें विधान का एक आवश्यक हिस्सा होती हैं. प्रत्येक राजा या सरकार के पास एक होता है जो कानून देने वाले की शक्ति और प्राधिकार का प्रतीक होता है. प्रत्येक मुहर के तीन तत्व होते हैं, जिनके बिना मुहर अधूरी होती है. मुहर में:
- कानून देने वाले का नाम
- कानून देने वाले का उपनाम
- कानून देने वाले का प्राधिकार: राज्य जिसमें वह प्रभुता करता है.
इन तीन तत्वों के बिना, एक मुहर काम नहीं कर सकती. यह उस राजा का पूर्णत: प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती जिसके प्राधिकार का यह प्रतीक है. राज्य के अधिकारियों की मुहरों की सुरक्षा का बहुत ध्यान दिया जाता है. बिना इसके कुछ भी यहाँ तक कि हस्ताक्षर भी राजकीय नहीं हैं. परन्तु एक साधारण कागज के टुकड़े पर मुहर लगने के बाद वह एक क़ानूनी रूप से बन्धनकारी दस्तावेज बन जाता है जो कि राज्य की शक्ति को प्रवर्तित करता है.
राजाओं के राजा की मुहर भी, पृथ्वी के शासकों के समान उसका नाम, उपनाम और प्राधिकार को देती है. पवित्र व्यवस्था जो स्वर्ग और पृथ्वी दोनों में सभी सृजित किये हुओं को नियंत्रित करती है वह दस आज्ञाएँ हैं. पहली चार आज्ञाओं में मनुष्य का सृष्टिकर्ता के साथ सम्बन्ध को समाविष्ट किया गया है. अन्तिम छह एक मनुष्य का अपने साथी मनुष्य के साथ व्यवहार के बारे में बताता है. सभी क़ानूनी रूप से बन्धनकारी विधानों के समान यहुवाह की व्यवस्था में उसकी मुहर लगी हुई है. वास्तव में यह दस आज्ञाओं का ही एक भाग है! दसों आज्ञाओं में से केवल चौथी आज्ञा है जिसमे एक मुहर के लिए आवश्यक तीनों तत्व हैं. इसमें यहुवाह का नाम, उसका उपनाम, और उसकी रियासत का वर्णन जिसमे वह राज्य करता है.
“तू विश्रामदिन को पवित्र मानने के लिए स्मरण रखना. छह दिन तो तू परिश्रम करके अपना सब कामकाज करना; परन्तु सातवाँ दिन तेरे यहुवाह एलोहीम के लिए विश्रामदिन है. उसमें न तो तू किसी भांति का काम-काज करना, और न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा दास, न तेरी दासी, न तेरे पशु, न कोई परदेशी जो तेरे फाटकों के भीतर हो. क्योंकि छह दिन में यहुवाह ने आकाश, और पृथ्वी, और समुद्र, और जो कुछ उनमें है, सबको बनाया, और सातवें दिन विश्राम किया; इस कारण यहुवाह ने विश्राम दिन को आशीष दी और उसको पवित्र ठहराया.” (निर्गमन २०:८-११)
चौथी आज्ञा स्वत: ही यहुवाह राजाओं का राजा की राजकीय मुहर है जिसमें:
१ उसका नाम: यहुवाह
२ उसका उपनाम: एलोहीम
३ उसकी रियासत: स्वर्ग और पृथ्वी, समुद्र, और जो कुछ उनमें है.
वे सभी जो अपने माथे पर यहुवाह की मुहर चाहते हैं और पवित्र सुरक्षा में रहना चाहते हैं, वे उसकी उपासना सातवे दिन सब्त को करेंगे जिसकी गणना उसके चन्द्र-सौर कैलेन्डर के द्वारा की जाती है. शैतान जानता है की वे सभी जिन्होंने सब्त के दिन यहुवाह की उपासना करने के द्वारा अपने माथे पर यहुवाह की मुहर को ग्रहण किया है उन्हें सुरक्षा प्रदान की गई है. यही वह कारण है की उसने पुरजोर कोशिश किया की पुरातन लूनर सब्त के ज्ञान को नष्ट करे और लोगो को एक अन्य दिन पर उपासना करने के लिए अग्रसर करे.
यहुवाह की मुहर के
रूप में सब्त के तीन कार्य हैं.
१ यह सुरक्षा देता है
२ यह शक्ति देता है
३ यह एक निष्ठा का प्रतीक है.
वे जिनके माथे पर यहुवाह की मुहर है वे पवित्र सुरक्षा को प्राप्त करते हैं.
“जो परमप्रधान के छाए हुए स्थान ने बैठा रहे, वह सर्वशक्तिमान की छाया में ठिकाना पाएगा.
वह तुझे अपने पंखों की आड़ में ले लेगा, और तू उसके परों के नीचे शरण पाएगा, उसकी सच्चाई तेरे लिए ढाल और झिलम ठहरेगी.
हे यहुवाह तू मेरा शरणस्थान ठहरा है तू ने जो परमप्रधान को अपना धाम मान लिया है इसलिए कोई विपत्ति तुझ पर न पड़ेगी न कोई दुःख तेरे डेरे के निकट आएगा.” (भजन ९१:१,४.९-१०)
वे जिन्होंने यहुवाह की मुहर को पा लिया है उन्होंने शक्ति पाई है. जैसे की गर्म लाख(मोम) धातु के साँचे की छाप ले लेता है, औए कड़ा हो जाता है. कड़ी लाख(मोम) की मुहर, धातु की मुहर का जिसमे वह ढाली गई एक पूर्ण प्रतिबिम्ब होती है. वे जो यहुवाह की आज्ञापालन और उसके पवित्र सब्त पर उसकी उपासना के लिए हर कीमत पर प्रतिबद्ध हैं, वे अपने मस्तिष्क पर पवित्र छाप पाएँगे. उनका चरित्र पवित्र व्यवस्था के मानने के कारण दृढ होगा. मनुष्य पवित्र व्यक्तित्व की छाप को पा लेता है और वह एक नया मनुष्य बन जाता है. मस्तिष्क शक्तिशाली हो जाता है क्योंकि वह पवित्र मस्तिष्क के साथ एक हो जाता है. नये विचार, नई आदतें, और इच्छाएँ अब एक जीवन को पवित्र व्यवस्था की समनुरूपता में जीने के लिए अग्रसर करते है.
“और जो हमें तुम्हारे साथ मसीह में दृढ करता है, और जिसने हमारा अभिषेक किया वही यहुवाह है जिसने हम पर छाप भी कर दी है और बयाने में आत्मा को हमारे मनों में दिया.” देखिये २कुरिन्थियों १:२१,२२)
यह उस मुहर को प्राप्त करने के द्वारा है की यहुवाह के आज्ञाकारी बच्चे संसार के अन्त के विनाश के दौरान शक्ति पाते और सुरक्षित रहते हैं.
“मुहर लगाया जाना . . . [यहुवाह] की ओर से उसके चुने हुओं की सम्पूर्ण सुरक्षा की वाचा है. मुहर लगाया जाना यह दर्शाता है की आप . . . [यहुवाह] के चुने हुए लोग हैं. उसने आपको अपना बना लिया है. [यहुवाह]. . . की मुहर पाने से हम. . .[यहुशुआ] की खरीदी हुई सम्पत्ति हैं और किसी में इतना साहस नहीं है की हमें उसके हाथों से छुड़ाए.” (Ellen G White, Christ Trimphant, p, 102)
सब्त निष्ठा का भी एक प्रतीक है. यह उन लोगों के
बीच चिन्ह होता है जो यहुवाह की उपासना करते हैं या नहीं करते. विद्रोह और
अनाज्ञाकारिता हमेशा शैतान के राज्य का चिन्ह रहे
हैं. इस प्रकार पवित्र व्यवस्था के प्रति निष्ठा और आज्ञाकारिता ऐसा चिन्ह है जो
स्वर्गीय वस्तुओं को अलग रखती हैं. पवित्र व्यवस्था आज भी उतनी ही बन्धनकारी है
जितनी की सृष्टि के समय और फिर सीने पर्वत पर से कही गई. यहुशुआ ने इस गलत विचार
को स्पष्ट कर दिया की व्यवस्था क्रूस पर चढ़ा दी गई
है जब उसने बताया की हमारे बनाने वाले के प्रेम का सही साक्ष्य उसकी व्यवस्था का
पालन करने में मिलता है.
“यदि तुम मुझसे प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे.” (यहुन्ना १४:१५)
चौथी आज्ञा के साथ पवित्र व्यवस्था को मानना यहुवाह के लोगों की अपने बनाने वाले को देने के लिए निष्ठा की वाचा है. समय की गणना के लिए सृष्टिकर्ता की रची गई प्रणाली के अनुसार सातवें दिन सब्त पर उपासना करना विश्वासी और निष्ठावान को पृथ्वी के सभी लोगों से अलग करता है.
यहुवाह ने स्वयं सातवे दिन सब्त को अपने और अपने लोगों के बीच चिन्ह होने के लिए दिया.
“निश्चय तुम मेरे विश्रामदिनों को मानना, क्योंकि तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में मेरे और तुम लोगों के बीच यह एक चिन्ह ठहरा है, जिससे तुम यह बात जान रखो कि यहुवाह हमारा पवित्र करने हारा है.”(निर्गमन ३१:१३)
शैतान ने अनगिनत झूठ और विधर्म के द्वारा लोगों को चौथी आज्ञा को तोड़ने के लिए धोखा दिया और छल किया है. न केवल उसने यह सिखाया कि यह अब बन्धनकारी नहीं है, परन्तु उसने कैलेन्डर को ही बदल दिया जिससे कोई सप्ताह का सातवाँ दिन की गिनती कर सकता था! धर्मशास्त्र चेतावनी देता है की शैतान “परमप्रधान के विरुद्ध बातें कहेगा, और परमप्रधान के पवित्र लोगों को पीस डालेगा, और समयों और व्यवस्था के बदल देने की आशा करेगा.” (दानिएल ७:२५)
शैतान ने चन्द्र-सौर कैलेन्डर को एक ओर करते हुए लगातार साप्ताहिक चक्रों वाला एक सौर कैलेन्डर को समस्त विश्व के उपयोग के लिए रखते हुए कैलेन्डर को बदल दिया. शैतान ने लोगों को यह सिखाते हुए की पवित्र व्यवस्था “क्रूस पर चढ़ा दी गई” है विधान को बदल दिया. यह एक उद्धेश्य के लिए किया गया: यह सुनिश्चित करने के लिए की अन्तिम दिनों के दौरान जबकि सात अन्तिम महामारियाँ पृथ्वी पर उन्डेली जाएँगी जन समुदाय बिना पवित्र सुरक्षा के छोड़ दिया जाय.
लोगों को उद्धार और सुरक्षा का मौका दिए जाने के लिए पुकार हो रही है:
“एलोहीम से डरो, और उसकी महिमा करो, क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुँचा है; और उसका भजन करो, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जल के सोते बनाए.” (प्रकाशितवाक्य १४:७)
उन अंधकारपूर्ण दिनों के समय जब यहुवाह का कोप अपश्चातापी पापियों पर उँडेला जाएगा वे सभी जो चेतावनी की ओर ध्यान देते और दयापूर्ण आमंत्रण को स्वीकार करते ढांपे जाएँगे. यही पिता की हार्दिक अभिलाषा है. यही कारण है की यहुवाह ने पृथ्वी पर सभी आत्माओं के पास सच्चे सब्त का सन्देश ले जाने के लिए स्वर्ग के समृद्ध स्त्रोतों के सुपुर्द किया है. यहुवाह चाहता है की हर कोई बचाया जाए. वह धरती से जुड़े अपने बच्चों को बचाना चाहता है. वे सभी जो सच्चे सातवे दिन सब्त पर उपासना करते हैं, और इस प्रकार आज्ञाकारिता के द्वारा सृष्टिकर्ता का आदर करते हैं, पवित्र सुरक्षा पाएँगे और अन्त में उसके जिसके साथ उनका हृदय बहुत आदर प्रेम करता है स्वर्ग के घर को जाएँगे.
“उसने जो मुझ से स्नेह किया है, इसलिए मैं उसको छुड़ाउंगा, मैं उसको ऊँचे स्थान पर रखूँगा, क्योंकि उसने मेरे नाम को जान लिया है. जब वह मुझको पुकारे, तब मैं उसकी सुनूँगा, संकट में मैं उसके संग रहूँगा, मैं उसको बचाकर उसकी महिमा बढ़ाऊँगा. मैं उसको दीर्घायु से तृप्त करूँगा, और अपने किये हुए उद्धार का दर्शन दिखाऊंगा.” (भजन ९१: १४-१६)