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पौलुस, रोमी और सब्त

धर्मग्रन्थ के कुछ भाग दूसरे अंश से प्रतिकूल प्रगट हो सकते हैं. जब बाइबल के छात्र इसे पाते है, तब वे यह मान लेते हैं कि बाइबल विश्वास करने के योग्य नहीं है. इस मतभिन्नता का विश्लेषण करने के बदले वे बाइबल को अस्वीकार कर देते हैं.

बाइबल के प्रत्येक छात्र को यह स्मरण रखना चाहिए कि:

सत्य एकसा है

सत्य कभी अपने-आप का खण्डन नहीं करता.

जब बाइबल का एक सन्दर्भ बाइबल के दूसरे पद से भिन्न नजर आए, तब यह स्वर्गीय आमंत्रण है कि और अधिक अध्ययन किया जाए. विषय से सम्बन्धित सभी तथ्य और सिद्धान्त को अध्ययन के लिए प्रस्तुत करना चाहिए. निष्कर्ष जो साक्ष्य के महत्व के प्रतिकूल या खण्डन में न हो वही सही तालमेल होगा. इसके अतिरिक्त Bible Studyअध्ययन हमेशा प्रगट खण्डन का विश्लेषण करता है क्योंकि सत्य कभी अपने आप का खण्डन नहीं करता. एक  अंश जिसने बहुत से लोगों को भ्रमित कर दिया वह रोमियों १४:५-६ में पाया जाता  है.

“कोई तो एक दिन को दूसरे से बढ़कर मानता है, और कोई सब दिनों को एक समान मानता है. हर एक अपने ही मन में निश्चय कर ले. जो किसी दिन को मानता है, वह याहुवह के लिए मानता है. जो खाता  है, वह याहुवह के लिए खाता है, क्योंकि वह याहुवह का धन्यवाद करता है, और जो नहीं खाता, वह याहुवह के लिए नहीं खाता और याहुवह का धन्यवाद करता है.” (देखिए रोमियों १४:५-६)

यह वचन “हर एक अपने मन में निश्चय कर ले” का उपयोग यह सिद्ध करने के लिए किया जाता है कि सब यह चुनाव करने के लिए स्वतंत्र है कि वे किसी दिन , जो भी हो, सृष्टिकर्ता की उपासना करें. लोग प्रत्येक दिन उपासना करने का दावा करते हैं और उपासना के लिए विशिष्ट सब्त का दिन न होने के समर्थन में बाइबल के रोमियों १४ का भी उपयोग करते हैं. यह विश्वास इस कल्पना पर आधारित है कि पौलुस उद्धत अंश में सब्त और पर्बों पर बोल रहा है. तौभी सन्दर्भ की और पौलुस के द्वारा लिखे गए पत्रों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने पर इस विचार की त्रुटि प्रगट होती है. पौलुस ने हमेशा पर्बों और सातवें दिन सब्त का पालन किया और अपने धर्मान्तरित लोगों को भी यही करना सिखाया. पौलुस ने कभी यह नहीं सिखाया की पवित्र व्यवस्था अब बन्धनकारी नहीं है. पूर्व में रोमियों में ही पौलुस ने यह अंगीकार किया है कि “इसलिए व्यवस्था पवित्र है, और आज्ञा भी ठीक और अच्छी है.” (रोमियों ७:१२) पौलुस ने हमेशा विश्वास के द्वारा धार्मिकता को सम्मान के साथ संतुलित किया कि व्यवस्था अभी भी बन्धनकारी है और इसका पालन किया जाना चाहिए.

तो क्या हुआ? क्या हम इसलिए पाप करें कि हम व्यवस्था के अधीन नहीं वरन अनुग्रह के अधीन हैं? कदापि नहीं!
(देखिए रोमियों ६:१५)

रोमियों १४:५ और ६ का सन्दर्भ यह स्पष्ट करता है कि पौलुस का सभी दिनों का एकसा सम्मान करने से क्या अर्थ था. वह मूर्तिपूजकों के व्यवहार से सम्बन्धित था. रोमियों १४ का प्रारम्भ रोमी विश्वासियों को यह निर्देश देते हुए होता है, कि वे नये धर्मान्तरित लोगों को जो विश्वास में कमजोर थे समर्थन दें  और उन्हें ऐसे बिन्दुओ की चर्चा में न उलझाएँ जो उनके नये विश्वास को हिलाकर रख दे.

“जो विश्वास में निर्बल है, उसे अपनी संगति में ले लो, परन्तु उसकी शंकाओं पर विवाद करने के लिए नहीं. एक को विश्वास है कि सब कुछ खाना उचित है, परन्तु जो विश्वास में निर्बल है वह साग-पात ही खाता है. खानेवाला न खानेवाले को तुच्छ न जाने, और न खानेवाला खानेवाले पर दोष न लगाए; क्योंकि याहुवह ने उसे ग्रहण किया है. तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगता है? उसका स्थिर रहना और गिर जाना उसके स्वामी ही से सम्बन्ध रखता है; वरन  वह स्थिर ही कर दिया जाएगा, क्योंकि याहुवह उसे स्थिर रख सकता है. कोई तो एक दिन को दूसरे से बढ़कर मानता है, और कोई सब दिनों को एक समान मानता है. हर एक अपने ही मन में निश्चय कर ले. जो किसी दिन को मानता है, वह याहुवह के लिए मानता है. जो खाता  है, वह याहुवह के लिए खाता है, क्योंकि वह याहुवह का धन्यवाद करता है, और जो नहीं खाता, वह याहुवह के लिए नहीं खाता और याहुवह का धन्यवाद करता है. क्योंकि हममें से न तो कोई अपने लिए जीता है और न कोई अपने लिए मरता है.” (रोमियों १४:१-७)

ये नये धर्मान्तरित, मूर्तिपूजकों से निकल कर आये थे. इन लोगों की ऐसी प्रकृति थी कि उनमें अभी तक उनके पुराने मूर्तियों की शक्ति का भय व्याप्त था. बहुत से अभी तक अपने पुराने अन्धविश्वास से प्रभावित थे. क्योंकि शहर में बहुत सारा मांस मूर्तियों को चढ़ाया जाता था, बहुत से नये धर्मान्तरित लोगों को मांस खाने से दूर रखा जाता था और इसके बदले उन्हें फल, अन्न और सब्जी खाने के लिए चुनाव करना होता था. पौलुस यह अच्छी तरह जानता था कि मूर्तियों की शक्ति शैतानों से निकल कर आती है और याहुवह की शक्ति अधिक शक्तिशाली है. पौलुस को मूर्तियों पर चढ़ाया हुआ मांस खाने में कोई समस्या नहीं थी क्योंकि वह जानता था कि मूर्ति कोई ईश्वर है ही नहीं. मूर्ति और उनको बलिदान कर चढ़ाया हुआ भोजन पौलुस के लिए कोई समस्या नहीं थी क्योंकि वह पहले इस चढावा प्रथा का एक हिस्सेदार था. पौलुस एक विश्वास योद्धा और भेड़ो का उदार चरवाहा था. वह जानता था कि उसका विश्वास मूर्तियों का चढ़ावा खाने से नहीं हिलेगा, लेकिन दूसरों में यह ज्ञान नहीं है.

headless idols in Corinth“पर सबको यह ज्ञान नहीं, परन्तु कुछ तो अब तक मूर्ति को कुछ समझने के कारण मूर्तियों के सामने बलि की हुई वस्तुओं को कुछ समझकर खाते हैं, और उनका विवेक निर्बल होने के कारण अशुद्ध हो जाता है. भोजन हमे याहुवह के निकट नहीं पहुँचाता. यदि हम न खाएँ तो हमारी कुछ हानि नहीं, और

यदि खाएँ तो कुछ लाभ नहीं.” (१कुरन्थियों ७:७-८)

पौलुस ने यह निश्चय कर रखा था कि ऐसा कोई कार्य कभी न करे जिससे दूसरे के विश्वास कमजोर हो.

उसने अपना निर्देश जारी रखा:

“परन्तु सावधान! ऐसा न हो कि तुम्हारी यह स्वतन्त्रता कहीं निर्बलों के लिए ठोकर का कारण हो जाए. क्योंकि यदि कोई तुझ ज्ञानी को मूर्ति के मन्दिर में भोजन करते देखे और वह निर्बल जन हो, तो क्या उसके विवेक को मूर्ति के सामने बलि कि हुई वस्तु को खाने का साहस न हो जाएगा.इस रीति से तेरे ज्ञान के कारण वह निर्बल भाई जिसके लिए याहुशुआ मरा, नष्ट हो जाएगा. इस प्रकार भाईयों के विरुद्ध अपराध करने से और उनके निर्बल विवेक को चोट पहुँचने से, तुम मसीह के विरुद्ध अपराध करते हो. इस कारण यदि भोजन मेरे भाई को ठोकर खिलाए, तो मैं भी किसी रीति से मांस न खाऊंगा, न हो कि मैं अपने भाई के लिए ठोकर का कारण बनूँ.” (१कुर्न्थियो ८:९-१३)

कुछ नये धर्मान्तरित लोग किसी दिन को अपने पुराने मूर्तिपूजक विश्वास के अनुसार किसी अन्य दिन से अधिक आदर का मानते थे. मूर्तिपूजक अक्सर आंशिक उपवास करते थे और कुछ विशेष दिनों में कुछ भोजन वस्तुओं से परहेज करते थे. यह रोमन केथोलिक लोगों के समान है जो शुक्रवार को मछली खाते हैं परन्तु अन्य मांस नहीं खाते. कुछ नये धर्मान्तरित मूर्तियों को बलिदान किये गए भोजन को खाने में डरते थे परन्तु वहीं दूसरे लोग अब भी ईश्वर के विभिन्न उपवास दिनों का पालन कर रहे थे. कुछ लोग किसी एक दिन को या दूसरे उपवास दिन को बिना कोई विशिष्ट आदर दिए, सभी दिन को समान मानते थे. यही वह विषय था जिसके बारे में पौलुस रोमियों १४ में कह रहा था. वह सातवें दिन सब्त या वार्षिक पर्ब दिनों के सम्बन्ध में बिलकुल ही नहीं कह रहा था!

बहुत से लोगों द्वारा यह वाक्यांश “हर एक अपने मन में निश्चय कर ले” (रोमियों १४:५) को गलत समझा गया. यह किसी को भी व्यवस्था को तोड़ने और उपासना के लिए स्वयं ही कोई भी दिन का चुनाव करने की इजाजत नहीं देता. इसके विपरीत पौलुस इस सन्दर्भ में कह रहा है कि प्रत्येक व्यक्तिगत रूप से अभिशस्त हो जाए कि क्या ठीक है ताकि वह व्यवस्था का पालन कर सके.

वाक्यांश “fully convinced” or “fully persuaded” आता है plerophoreo  से इस ग्रीक शब्द का अर्थ:

 “To carry out fully (in evidence),i.e. completely  assure (or convince), entirely accomplish …इस शब्द का अर्थ ‘to bring in full measure, to fullfil’, … in Roman 14:5 it is said of the apprehension [understanding] of the will of …[Yahuwah ]”(#4135, Strongs Expanded Dictionary of the Bible words, p 1318)

पौलुस ने यह दावा कभी नहीं किया कि व्यवस्था का पालन न किया जाए. अपेक्षाकृत वह रोमियों से कह रहा है कि प्रत्येक को कर्मठतापूर्वक याहुवह की इच्छा की पूर्ण समझ के लिए प्रार्थना करना चाहिए. यदि रोमी वास्तव में अपने अपने मस्तिष्क में “पूर्णतःविश्वास “ में होते तब कुछ नये धर्मान्तरित जो अभी तक मूर्तिपूजक अन्धविश्वास से डरते और मूर्तिपूजक उपवासों को मानते है, को कोई समस्या नहीं होती पौलुस का प्रबोधन यह था कि सभी इन “भोले-भालों को विश्वास” में सुरक्षित रखें और उनके लिए ठोकर का अवरोध न बनें. इसके बदले जो विश्वास में नये हैं, उनकी यह जिम्मेदारी है कि वे व्यवस्था और याहुवह की इच्छा का अध्ययन करें ताकि वे प्रत्येक पवित्र इच्छा को समझें और उसकी सामंजस्यता में रहें.

याहुवह हमारे जीवन की छोटी से छोटी बात के लिए चिंतित है. फिर भी वह चाहता है कि हम यह समझें कि कार्य, भोजन या उपवास के द्वारा हम बचाए नहीं जा सकते. उसकी दिलचस्पी हृदय की अभिप्रेरणा से है जो कार्य के लिए प्रेरित करती है. पौलुस यह समझता है कि सिर्फ प्रेम के द्वारा की गई सेवा ही याहुवह को ग्रहण योग्य है. उसने रोमी विश्वासियों को फटकार दी कि वे एक दूसरे को कार्य, उपवास करने या न करने के बारे में परखना छोड़ दें.

“तू अपने भाई पर क्यों दोष लगता है ? या, तू फिर क्यों अपने भाई को तुच्छ जानता है ? हम सब के सब याहुवह के न्याय सिंहासन के सामने खड़े होंगे. क्योंकि लिखा है.

‘याहुवह कहता है, मेरे जीवन कि सौगन्ध कि हर

एक घुटना मेरे सामने टिकेगा

और हर एक जीभ याहुवह को अंगीकार करेगी.’

इसलिए हममें से हर एक याहुवह को अपना-अपना लेखा देगा. (देखिए रोमियों १४:१०-१२)

 पौलुस के सम्पूर्ण सन्देश का मुख्य विषय यह है कि पिता के प्रेम के कारण विश्वास के साथ व्यवस्था का पालन किया जाए. पौलुस ने रोमियों को दूसरों को परखने के सम्बन्ध में चेतावनी दी है क्योंकि हम सब भी याहुवह के सामने परखे जाएंगे.

“प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता, इसलिए प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है”. (रोमियों १३:१०)

पौलुस का सन्देश आज भी वैसा ही लागू होता जैसा पहले लिखा गया था. प्रत्येक को उन लोगों की जो विश्वास में नये हैं सुरक्षा करना चाहिए न कि उन्हें परखने और उनके लिए अवरोध उत्पन्न करने वाले. प्रत्येक को ज्ञान, अध्ययन और याहुवह कि इच्छा की समझ और उसके सामंजस्यता में अपना जीवन व्यतीत करने के लिए वचनबद्ध होना चाहिए. सभी विश्वासियों को व्यवस्था का पालन करना चाहिए क्योंकि वे व्यवस्था के देने वाले से प्रेम रखते है.