पौलुस, रोमियो व सब्बात
- रोमियो १४ की समझ
- “एक दिन को दूसरे दिन से बढ़कर मानना...”
- “हर कोई अपने मन में निश्चय कर लें।”
- क्या सातवाँ-दिन सब्बात का पालन अभी भी बाध्यकारी है?
- क्या मसीहियों को वार्षिक पर्व मनाना चाहिए?
- क्या याहुशूआ ने व्यवस्था को समाप्त कर दिया?