"मैं भी तुझ पर दंड की आज्ञा नहीं देता; जा, और फिर पाप न करना।” (युहन्ना ८:११)
पवित्रशास्त्र स्पष्ट रूप से कहता है: "पिता किसी का न्याय भी नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है।" (युहन्ना ५:२२) पुत्र जो न्यायी है किसी की निंदा नहीं करता क्योंकि पिता और पुत्र दोनों ही पाप से नफरत करते हैं, जबकि वे पापी से प्रेम करते हैं। दुर्भाग्यवश बहुत से लोग जो आपने आप को "मसीही" केहते हैं, और "मसीह के समान" जीवन जीने का दावा करते हैं, अक्सर याहुशुआ के द्वारा स्थापित किए गए उदाहरण का पालन नहीं करते। वे दूसरों की निंदा करते हैं और उनका न्याय करते हैं जिनके पाप उनके अपने पापों से अलग या कम माने जाते हैं। शायद इस दुखद सत्य को इतनी स्पष्टता से कहीं और नहीं दिखाया जाता है जितना कि समलैंगिकता के विषय में दिखाया जाता है। समलैंगिकता को एक ही लिंग के व्यक्तियों के बीच यौन संभोग के कार्य के रूप में परिभाषित किया जाता है। पवित्रशास्त्र बहुत ही स्पष्ट है कि समलैंगिकता के कार्य में दिलचस्पी लेना एक पाप और घृणित काम है:
“स्त्रीगमन की रीति पुरूषगमन न करना; वह तो घिनौना काम है।" (लैव्यवस्था १८:२२)
“और यदि कोई जिस रीति स्त्री से उसी रीति पुरूष से प्रसंग करे, तो वे दोनों घिनौना काम करने वाले ठहरेंगे; इस कारण वे निश्चय मार डाले जाएं, उनका खून उन्हीं के सिर पर पड़ेगा।" (लैव्यवस्था २०:१३)
“और उनके देश में पुरुषगामी [पुरूष वेश्या पंथ स्थान] भी थे। वे उन जातियों के से सब घिनौने काम करते थे जिन्हें याहुवाह ने इस्राएलियों के सामने से निकाल दिया था।” (१ राजाओं १४:२४)
दुर्भाग्यवश, कई लोग जो “मसीही” होने का दावा करते हैं, जो लोग "मसीह-जैसा" जीवन जीने का दावा करते हैं, वे अक्सर याहुशुआ द्वारा निर्धारित उदाहरण का पालन नहीं करते हैं। वे दूसरों की निंदा और न्याय करते हैं जिनके पाप उनके अपने पापों से भिन्न और कम माने जाते हैं। |
पतित मनुष्यों के हृदय को, अपनी असफलताओं को नजरअंदाज करते हुए, दूसरों का न्याय करना स्वाभाविक है। इस प्रकार, बहुत से लोग जो समलैंगिक नहीं होते, पवित्रशास्त्र का एक कुल्हाडी की तरह उपयोग उन लोगों पर हमला करने के लिए करते हैं जिन्हें वे अपने से नीचे समझते हैं और अपने ही जीवन में कई दूसरे पहलूओं की अनदेखी करते हैं, जिसकी, व्यवस्था भी निंदा करती है।
"क्या तुम नहीं जानते, कि अन्यायी लोग याहुवाह के राज्य के वारिस न होंगे? धोखा न खाओ, न वेश्यागामी, न मूर्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरूषगामी। न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देने वाले, न अन्धेर करने वाले याहुवाह के राज्य के वारिस होंगे।" (१ कुरून्थियो ६:९-१०)
समलैंगिकता एक पाप है। यह परस्त्रीगमन, घमंड, स्वार्थी, पियक्कड़पन, चोरी और कोई भी ऐसे काम जिन्हें सुचीबद्ध किया जा सके, के समान ही एक पाप है। एक प्रेमी पिता होने के नाते याहुवाह पाप से नफरत करते हैं, उस कारण से कि पाप उनके प्यारे बच्चों को क्या करता है। परंतु एक प्रेमी पिता के रूप में, याहुवाह फिर भी पापियों से प्रेम करते हैं। याहुवाह ने अपनी व्यवस्थाएँ दी कि इंसानियत का मन यह समझने के लिए प्रबुद्ध हो जाए कि कैसे खुशी और सुख पा सकते हैं और किस प्रकार के कदमों को उठाने से उन्हें दर्द और निराशा का सामना करना पड़ सकता है।
"पर हम जानते हैं, कि यदि कोई व्यवस्था को व्यवस्था की रीति पर काम में लाए, तो वह भली है। यह जानकर कि व्यवस्था धर्मी जन के लिये नहीं, पर अधमिर्यों, निरंकुशों, भक्तिहीनों, पापीयों, अपवित्रों और अशुद्धों...व्याभिचारियों, पुरूषगामियों [समलैंगिको], मनुष्य के बेचने वालों, झूठों, और झूठी शपथ खाने वालों, और इन को छोड़ खरे उपदेश के सब विरोधियों के लिये..." (१ तिमुथियुस १:८-११)
कोई भी पापी, भले ही किसी भी तरह का पाप क्यों न हो, स्वर्ग में प्रवेश नहीं करेगा। सभी जो बचाये जायेंगे, उन्हें शुद्ध और पवित्र होना होगा जैसे याहुशुआ शुद्ध और पवित्र हैं। यदि कोई भी अनंत जीवन को पाना चाहेगा उसे दूसरे तरह के पापों के साथ ही साथ, समलैंगिकता के पाप को भी याहुशुआ के हवाले कर देना चाहिए।
"परमेश्वर का क्रोध तो उन लोगों की सब अभक्ति और अधर्म पर स्वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं। इस कारण परमेश्वर ने उन्हें उन के मन के अभिलाषाओं के अुनसार अशुद्धता के लिये छोड़ दिया, कि वे आपस में अपने शरीरों का अनादर करें। इसलिये परमेश्वर ने उन्हें नीच कामनाओं के वश में छोड़ दिया; यहां तक कि उन की स्त्रियों ने भी स्वाभाविक व्यवहार को, उस से जो स्वभाव के विरूद्ध है, बदल डाला। वैसे ही पुरूष भी स्त्रियों के साथ स्वाभाविक व्यवहार छोड़कर आपस में कामातुर होकर जलने लगे, और पुरूषों ने पुरूषों के साथ निर्लज्ज़ काम करके अपने भ्रम का ठीक फल पाया।" (रोमी १:१८, २३-२४, २६-२७)
पश्चिम के भ्रष्ट समाजों के भीतर ही, समलैंगिकता अधिक से अधिक आम हो रही है। कुछ सरकारें भी समलैंगिक संबंधों को अनुमति देने के लिए विवाह की परिभाषा का विस्तार कर रहे हैं। समलैंगिकता प्राचीन काल से ही अस्तित्व में रही। बाढ़ के बाद ४०० वर्षों से भी कम समय में, सदोम और अमोरा के लोग, समलैंगिकता के प्रति उनके झुकाव के लिए काफी प्रसिद्ध थे, “सदोमी” शब्द एक पुरुष समलैंगिक के लिए एक शब्द के रूप में समय के साथ आ रहा था। मुस्लिम देशों में, समलैंगिक यौन संबंध एक अपराध है जिसकी सजा अभी भी मृत्युदंड है। हालांकि, समलैंगिकता के मामलों में सभी देशों में हाल ही के वर्षों में काफी वृद्धि हुई है। ग्रेड स्कूलों के बच्चों के बीच लिंग भ्रम की भी सूचना मिली है जो रोते हैं कि वे "गलत शरीर में पैदा हुए"।
समलैंगिकता के कारण भिन्न हैं। जबकि कुछ ने इसे "वैकल्पिक जीवनशैली" के रूप में चुना, तो अधिकतर लोग बचपन में यौन शोषण के कारण समलैंगिक बन गए और कुछ उन प्रवृत्तियों के साथ पैदा हुए हैं। हाल के अध्ययनों ने चौंकाने वाला तथ्य दिखाया हैं कि उत्तरी अमेरिका की नदियों में उच्च स्तर पर मादा हार्मोन शामिल है। इसके अलावा, अधिकांश डिब्बाबंद सामान बिस्फेनल ए [Bisphenal A] के साथ रेखित होते हैं, यहाँ तक कि अधिकांश मादा हार्मोन वयस्कों द्वारा खाए जाने वाले भोजन में भी छोड़ दिए जाते हैं।
याहुवाह न्याय नहीं करता और याहुशुआ दोष नहीं लगाता। चाहे स्त्री हो या पुरूष किसी को भी न्याय करने के काम को अपने ऊपर नहीं लेना चाहिए जोकि यहाँ तक की पिता और पुत्र भी नहीं करते।
"दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए। क्योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा; और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।”
“तू क्यों अपने भाई की आँख के तिनके को देखता है, और अपनी आँख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता?
“और जब तेरी ही आंख मे लट्ठा है, तो तू अपने भाई से क्योंकर कह सकता है, कि ला मैं तेरी आंख से तिनका निकाल दूं?
“हे कपटी, पहले अपनी आंख में से लट्ठा निकाल ले, तब तू अपने भाई की आंख का तिनका भली भांति देखकर निकाल सकेगा।" (मत्ती ७:१-४)
याहुवाह किसी के समलैंगिक होने में गलती नहीं ढूंढा करते। बाइबल के संदर्भ, समलैंगिकता को पाप के रूप में, हमेशा व्यवहार करने पर केंद्रित करता है, नाकि स्थिति पर। जन्म से ही समलैंगिक पैदा होना या वातावरण के बिगड़ने से लिंग-भेद में गलत प्रकार के हार्मोन होना, स्वर्ग की दृष्टि में दोषी होना नहीं है। यह तो केवल एक पापमयी संसार में रहने का नतीजा है। हांलाकि, यह किसी दूसरे तरह के पापों के साथ ही, उस पाप में सक्रिय रूप से लिप्त रहने का लाईसेंस नहीं देता। विवाह के लिए बाइबिल आधारित परिभाषा साफ है: कि इसे एक पुरूष और स्त्री के बीच होना है:
"इस कारण मनुष्य माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे।" (इफिसियों ५:३१)
यही विवाह के लिए याहुवाह का मानक है और यह सभी के लिए एक आदर्श है जो दिव्य व्यवस्था से प्रेम करते हैं, उन्हें याहुवाह को समर्पित करना चाहिए। सभी जो पूर्ण संतोष और सहयोग, एक जीवन-साथी में देखते हैं वह केवल याहुवाह में पाया जा सकता है। समलैंगिक पुरुष और महिलाओं को, अपने समकक्षों के समान जो अविवाहित हैं, अपनी भावनात्मक और यौन पूर्ति के लिए याहुवाह में भरोसा करना चाहिए और अविवाहित रहने का चुनाव करना चाहिए।
जब विवाह और तलाक के बारे में पूछा गया, याहुशुआ ने समझाया कि वे जो अविवाहित रहने का चुनाव करते हैं, जीवन में याहुवाह की महिमा ला सकते हैं और उसकी इच्छा में जी सकते हैं, उन्ही लोगों के समान जो विवाह करते हैं। यह आश्वासन उन लोगों के लिए हैं जिनकी वरीयताएँ और प्रवृत्तियाँ स्वभाव में समलैंगिक होती है।
“याहुशुआ ने उन से कहा, सब यह वचन ग्रहण नहीं कर सकते, केवल वे जिन को यह दान दिया गया है। क्योंकि कुछ नपुंसक ऐसे हैं जो माता के गर्भ ही से ऐसे जन्मे; और कुछ नंपुसक ऐसे हैं, जिन्हें मनुष्य ने नपुंसक बनाया: और कुछ नपुंसक ऐसे हैं, जिन्हों ने स्वर्ग के राज्य के लिये अपने आप को नपुंसक बनाया है, जो इस को ग्रहण कर सकता है, वह ग्रहण करे। (मत्ती १९:११,१२)
याहुवाह पाप से घृणा करते हैं, परंतु पापी से वह प्रेम करते हैं। यही चरित्र हर किसी का होना चाहिए जो अपने आप को याहुवाह का पुत्र या पुत्री होने का दावा करते हैं। याहुशुआ ने सभी के लिए आदर्श रखे जब उन्होंने जोर देते हुए कहा:
“तुम में जो निष्पाप हो, वही पहिले पत्थर मारे।" (युहन्ना ८:७)
इस से फर्क नहीं पड़ता की किसी का पाप क्या है- केवल याहुशुआ ही पाप और शैतान की सामर्थ्य से बचा सकते हैं। चाहे आपकी पाप करनी की प्रवृत्ति वंशागत है या खुद कि जोती हुई, फिर भी इसके लिए एक ही जवाब है: मुक्तिदाता के लोहू के द्वारा पश्चाताप।
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समाज कुछ पापों को दूसरों की तुलना में अधिक जघन्य के रूप में वर्गीकृत कर सकता है, लेकिन कोई भी पाप हमें स्वर्ग के राज्य से बाहर रखेगा। अक्सर बहुत ही दिखावा करने वाले "मसीहियों" ने समलैंगिकता, पियक्कड़पन और चरित्रहीनता के पापों की निंदा की है, जबकि खुद के हृदयों के अंदर के गर्व, स्वार्थीपन और संसार के राज्य से प्रेम करने को नहीं जाँचा।
बाईबल में, समलैंगिता का दंड मृत्यु थी जिस प्रकार पेटूपन था। लेकिन आज, समलैंगिकों को छोड़ दिया जाता है जबकि पेटूओं को आहार-गोलियाँ और सहानुभूति दी जाती है। ठीक जैसे किसी को भी किसी दूसरे का रंग, बाल और पाप करने की प्रवृत्ति देखकर भेदभाव नहीं करना चाहिए, वैसे ही किसी को भी समलैंगिक व्यक्ति का न्याय नहीं करना चाहिए। सभी पापी हैं और सभी को समान रूप से उद्धारकर्ता की जरूरत है।
हर कोई चाहे स्त्री हो या पुरूष, जिंदगी में कुछ पापों का अनुभव करेंगे जिन पर उनकी अपनी खुदकी सामर्थ्य से काबू नहीं किया जा सकता। सभी को दिव्य छुटकारे की जरूरत अवश्य होगी। इस से फर्क नहीं पड़ता की किसी का पाप क्या है- केवल याहुशुआ ही पाप और शैतान की सामर्थ्य से बचा सकते हैं। चाहे आपकी पाप करनी की प्रवृत्ति वंशागत है या खुद कि जोती हुई, फिर भी इसके लिए एक ही जवाब है: मुक्तिदाता के लोहू के द्वारा पश्चाताप। किसी भी पाप पर जयवंत होने का केवल एक ही रास्ता है।
- मन को पवित्रशास्त्र के शब्दों के साथ बहने दीजिए। आपके लिए याह का यही वचन है।
"ऐसा करने से तेरा शरीर भला चंगा, और तेरी हड्डियां पुष्ट रहेंगी।" (नीतीवचन ३:८)
- विचार-विमर्श कर अपनी इच्छा को अपने बनाने वाले को सौंपने का चुनाव करिए। प्रार्थना में वचनो को बोले।
"तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।" (लूका २२:४२)
- महान कीमती वादों की मांग करिए।
"सो हम इन बातों के विषय में क्या कहें? यदि याहुवाह हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है?...परन्तु इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिस ने हम से प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं।" (रोमीयों ८:३१,३८)
अगर आप अपने जीवन में पापों के साथ संघर्ष कर रहे हैं, अगर आप में वंशागत या खुद कि जोती गई पाप कि प्रवत्तियाँ हैं जिन पर आपका काबू नहीं, तो याहुशुआ ही आपका एकमात्र हल है। आपके लिए उसका आमंत्रण है:
"हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हल्का है।" (मत्ती ११:२८-३० )