शैतान “झूठ का पिता” कहलाता है. यहुशुआ ने स्वयं यह कहा कि “ वह तो आरम्भ से हत्यारा है और सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उसमें है ही नहीं. ......क्योंकि वह झूठा है वरन झूठ का पिता है.” (यहुन्ना ८:४४) धोखा प्राकृतिक रूप से ही अस्थिर होता है. इसके पास कभीवह शक्ति नहीं हो सकती जो सत्य में होती है. झूठ अकेला हो तो हमेशा धोखा देने में असफल रहता है. शैतान यह जानता है, इसीलिए वह अपने झूठ को सत्य के साथ लपेट देता है. अपने झूठ को वह सत्य के जितना नजदीक रख सकता है उतना ही अधिक वह भ्रामक हो सकेगा.
शैतान जानता है कि व्यवस्था यहुवह के पवित्र चरित्र की प्रतिलिपी है. इसीलये यह व्यवस्था अपने देने वाले के समान कभी न बदलने वाली है. शैतान चाहता है कि लोग यहुवह की पवित्र व्यवस्था को तोड़ें. यह करने के लिये आवश्यक है कि शैतान लोगों को धोखा दे कि वे यह विचार करने लगें कि यहुवह की व्यवस्था बदल गई है या अब यह आवश्यक नहीं है व्यवस्था का पालन किया जाए. इस मूर्खतापूर्ण झूठ पर कोई तब तक विश्वास नहीं करेगा जब तक यह सत्य के साथ लपेटा गया न हो. इसलिये शैतान अपने झूठ को सिध्द करने के लिये धर्मग्रन्थ को प्रस्तुत करता है. इफिसियों २:१५ ऐसा वचन है जिसका सन्दर्भ हमेशा यह सिध्द करने के लिये लिया जाता है कि पवित्र व्यवस्था अब बन्धनकारी नहीं है. वास्तव में यह पूर्ण वाक्य नहीं है. ये सन्दर्भ में से लिये गए दो शब्द मात्र है जी शैतान के झूठ के पक्ष में लपेटे जाते हैं.
“और अपने शरीर में बैर अर्थात् वह व्यवस्था जिसकी आज्ञायें विधियों की रीति पर थीं, मिटा दिया कि दोनों से अपने में एक नया मनुष्य उत्पन्न कर के मेल करा दे.” (इफिसियों २:१५)
यह विचार भी अत्यन्त नामुनासिब होगा कि सभी न्याय और धार्मिक व्यवस्था के पिता ने अपनी स्वयं की पवित्र व्यवस्था का लोप कर दिया हो. कोई भी मानव सरकार बिना कानून-व्यवस्था के नहीं चलती है. इसी प्रकार पवित्र सरकार भी. यह दावा करने के लिये पौलुस अन्तिम व्यक्ति होगा कि क्रूस पर व्यवस्था का लोप हो गया जिसने स्वयं यह कहा कि :
“ इसलिये व्यवस्था पवित्र है, और आज्ञा भी ठीक और अच्छी है.”(रोमियों ७:१२)
यहुशुआ इसलिये नहीं आया कि व्यवस्था का लोप करे उसने कहा :
“ यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यवक्ताओं कि पुस्तकों को लोप करने आया हूँ, लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूँ. क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूँ, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएँ, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या एक बिंदु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा. इसलिए जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को भी तोड़े, और वैसा ही लोगों को सिखाये, वह स्वर्ग के राज्य में सब से छोटा कहलाएगा; परन्तु जो कोई उन आज्ञाओं का पालन करेगा और उन्हें सिखाएगा, वही स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा.” (मत्ती ५:१७-१९).
यहुशुआ ने पूर्णरूप से व्यवस्था का पालन किया. प्रत्येक बात में पवित्र व्यवस्था का पालन कर के यहुशुआ ने एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया जिसका सभी को अनुसरण करना चाहिए.
“...क्योंकि यहुशुआ भी तुम्हारे लिये दुःख उठाकर तुम्हें एक आदर्श दे गया कि तुम भी उसके पद चिन्हों पर चलो. न तो उसने पाप किया और न उसके मुँह से छल कि कोई बात निकली.”(१पतरस २:२१-२२)
धर्मशास्त्र हमेशा यह सिखाता है कि पवित्र व्यवस्था शाश्वत है. इसका पालन स्वर्ग और पृथ्वी दोनों में अनन्तकाल तक निरन्तर चलने वाले चक्र में किया जाना चाहिए. यदि बाइबल का कोई सन्दर्भ यह सिध्द करने के लिये उपयोग किया जावे कि व्यवस्था क्रूस पर चढाई जा चुकी है तो यह शैतान के झूठ को धर्मग्रन्थ के साथ लपेटना है कि पवित्र व्यवस्था का पालन करने की आवश्यकता नहीं है. इफिसियों २;१५ के स्पष्ट और सही अर्थ को तब ही समझा जा सकता है जब इस सन्दर्भ के पूरे अंश को पढ़ा जाए.
“ जिनमें तुम पहले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात् उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में कार्य करता है.
परन्तु यहुवह ने जो दया का धनी है, अपने उस बड़े प्रेम के कारण जिससे उसने हमसे प्रेम किया जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे तो हमें यहुशुआ के साथ जिलाया ( अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है ) और यहुशुआ में उसके साथ उठाया गया, और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया.
इस कारण स्मरण करो कि तुम जो शारीरिक रीति से अन्यजाति हो ( और जो लोग शरीर में हाथ के किये गए खतने से खतनेवाले कहलाते हैं, वे तुमको खतनारहित कहते हैं ), तुम लोग उस समय यहुशुआ से अलग, और इस्राएल कि प्रजा के पद से अलग किए हुए, और प्रतिज्ञा कि वाचाओं के भागी न थे, और आशाहीन और जगत में ईश्वर रहित थे पर अब यहुशुआ में तुम जो पहले दूर थे यहुशुआ के लहू के द्वारा निकट हो गये हो. क्योंकि वही हमारा मेल है जिसने दोनों को एक कर दिया और अलग करने वाली दीवार को जो बीच में थी ढा दिया, और अपने शरीर में बैर अर्थात् वह व्यवस्था जिसकी आज्ञाएँ विधियों कि रीति पर थीं, मिटा दिया कि दोनों से अपने में एक नया मनुष्य उत्पन्न कर के मेल करा दे, और क्रूस पर बैर को नाश करके इसके द्वारा दोनों को एक देह बना कर यहुवह से मिलाए. उसने आकर तुम्हें जो दूर थे और उन्हें जो निकट थे, दोनों को मेलमिलाप का सुसमाचार सुनाया.” (इफिसियों २:२,४-६,११-१७)
पौलुस सभी मूर्तिपूजकों लिखकर यह स्मरण दिला रहा है कि विश्वास में आने के पहले वे संसार की रीति पर चलते थे (वचन २) संसार कि रीति मनुष्य के द्वारा बनाई गई परम्पराएँ है जो पक्षपात और अनयता की ओर अग्रसर करती हैं. इस्राएली इस ग्रह के बहुत ही पक्षपातपूर्ण लोगों में से थे. यहुवह की योजना इस्राइली के लिए यह थी कि वे “जगत कि ज्योति बन जाएँ”. (मत्ती ५:१४) इसके स्थान पर इस्राइली अपनी उत्कृष्टता में दृढ रहकर बाहरी लोगों से कन्नी काटकर एक संकीर्ण समाज बन गये. पौलुस अलग अलग लोगों के बीच पक्षपातपूर्ण विभाजन की ओर इंगित करते हुए कहता है कि “ जिनमें तुम पहले इस संसार कि रीति पर और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात् उस आत्मा के अनुसार चलते थे...(इफिसियों २:२) शैतान की हमेशा यह कार्यप्रणाली रही है कि वह लोगों के बीच घृणा, सन्देह, पक्षपात और विभाजन उत्पन्न करे. “यही संसार की रीति” है. यहुशुआ ईश्वरीय प्रेम के द्वारा एकता लाने के लिए आया. वह गरीबों के घर में भी उतना ही सुखी और स्वीकार करने वाला था जितना कि अमीरों के महलों में. “यहुवह किसी का पक्ष नहीं करता, वरन हर जाति में जो उससे डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है”.(प्रेरितों १०:३४-३५) यह एक ऐसी धारणा थी जो चेलों को भी आरम्भ में समझ नहीं आई. पहले स्वर्गीय स्वप्न के भेजे जाने के बाद ही पतरस के लिए मूर्तिपूजक के घर में कदम रखना सम्भव हो सका वह भी बाद में पक्षपात से भरे इस्राइली लोगों के दबाव के अधीन हो गया.
“ इसलिए कि याकूब की ओर से कुछ लोगों के आने से पहले वह अन्यजातियों के साथ खाया करता था, परन्तु जब वे आए तो खतना किए हुए लोगों के डर के मारे वह पीछे हट गया और किनारा करने लगा.” (गलतियों २:१२)
यह देखकर कि क्या हो रहा है पौलुस ने तत्काल इस विभाजनात्मक आचरण पर रोक लगा दी. “Ordinance” शब्द जिसे पौलुस ने तब संदर्भित किया जब वह “ the law of commandments contained in ordinances” (इफिसियों २:१५) में कह रहा था, यह शब्द “dogma”(#1378) से आता है. यह वही “ पूर्वजों की परम्परा” है जिसे यहुशुआ ने तब निर्दिष्ट किया जब उसने सुस्पष्ट ढंग से पूछा “ तुम भी अपनी परम्पराओं के कारण क्यों यहुवह की आज्ञाओं को टालते हो ?” (मत्ती १५:३) व्यवस्था औए आज्ञाएँ जिनका कि पौलुस ने इफिसियों २:१५ में उल्लेख किया वह ईश्वरीय व्यवस्था नहीं है जिसे पौलुस ने पवित्र, न्यायोचित और अच्छी होना स्वीकार किया. पौलुस मनुष्यों द्वारा बनाई गई परम्परा , लादे गए कष्टदायक प्रतिबन्ध जो उन धार्मिक अगुओं द्वारा जो लोगों को सिखाते हैं कि वे स्वर्ग के लिए अपना मार्ग उनके (मनुष्यों) द्वारा बनाये नियमों को पालन कर तैयार कर सकते हैं. मनुष्यों द्वारा लादे गये ये नियम और प्रतिबन्ध ही मुख्यतः पक्षपात, सन्देह, घृणा और इस्राइलियो और मूर्तिपूजकों के बीच अलगाव की भावनाओं के लिये जिम्मेदार हैं. ये मनुष्यों द्वारा निर्मित नियम ही इस्राइलियो और मूर्तिपूजकों के बीच विभाजन की “ऊँची बीच की दीवार” के लिए जिम्मेदार हैं. पौलुस का इशारा इफिसियों २ में यह था कि यहुशुआ इसलिये आया कि सब जगह के लोगों को छुटकारा प्रदान करे. यहुशुआ ने न सिर्फ मनुष्यों का यहुवह के साथ परन्तु मनुष्यों का एक दूसरे के साथ भी सामन्जस्य स्थापित किया. अब इस्राइलियो और मूर्तिपूजकों, नर और नारी, बचाए गए और अभिशप्त के बीच अलगाव की कोई दीवार नहीं रही.
“ पर अब मसीह यहुशुआ में तुम जो पहले दूर थे, यहुशुआ के लहू के द्वारा निकट हो गये हो. क्योंकि वही हमारा मेल है जिसने दोनों को एक कर लिया और अलग करने वाली दीवार को जो बीच में थी ढा दिया, और अपने शरीर में बैर अर्थात् वह व्यवस्था जिसकी आज्ञाएँ विधियों की रीति पर थीं, मिटा दिया की दोनों से अपने में एक नया मनुष्य उत्पन्न कर के मेल करा दे”. (इफिसियों २:१३-१५)
यहुशुआ पवित्र व्यवस्था की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति था. इसलिए उसने क्षुद्र मस्तिष्क के लोगों द्वारा लादी गई मानवीय परम्परा और पक्षपात को तोड़ दिया. व्यवस्था की चरम पूर्ति प्रेम है.
“ क्योंकि सारी व्यवस्था इस एक ही बात में पूरी हो जाति है, “तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख.” (गलतियों ५:१५)
“ प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता, इसलिये प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है.” (रोमियों १३:१०)
यहुशुआ में सभी एक दूसरे से प्रेम में जुड़े हुए हैं. इफिसियों २, नई प्राप्त हुई एकता और यहुशुआ द्वारा लाई गई भाई-चारे की प्रीति और उसके चिरस्थायी पवित्र, न्यायसंगत और अच्छी व्यवस्था के पालन में आनन्द करता है.
याह में कोई पूरब या पश्चिम नहीं है,
उसमें कोई उत्तर या दक्षिण नहीं है;
परन्तु प्रेम की एक महान सहभागिता
पृथ्वी के सर्वत्र भाग में है.
उसी में सच्चे हिर्दय प्रत्येक जगह
उनकी उच्च सहभागिता पाएंगे;
उसकी सेवा सुनहरी डोर,
मानवता के लिये गहरा बन्धन है.
तब विश्वासी सदस्यों अपने हाथ मिला लो,
तुम्हारी कोई भी जाति क्यों न हो!
जो मेरे पिता की सेवा पुत्र के समान करता है
वह निश्चय मेरा वंश है.
याह में अब पूरब और पश्चिम,
उत्तर और दक्षिण आपस में एक हो;
सारी मसीही आत्माएँ उसमे एक हैं
पृथ्वी के सर्वत्र भाग में.
दस आज्ञाएँ = यहुवह के अपरिवर्ती
गुण की प्रतिलिपी:
- न्यायसंगत: यहुवह – रोमियों ३:२६; उसकी व्यवस्था - रोमियों ७:१२.
- सच्चा: यहुवह – यहुन्ना ३:३३; उसकी व्यवस्था - नेहेमेयाह – ९:१७
- विशुद्ध: यहुवह – १यहुन्ना ३:३; उसकी व्यवस्था – भजन – १९:७,८
- ज्योति: यहुवह – १ यहुन्ना १:५; उसकी व्यवस्था – नीतिवचन ६:२३
- विश्वासयोग्य: यहुवह – १कुरन्थियों १:९; उसकी व्यवस्था – भजन ११९:८६
- अच्छा: यहुवह – नहूम १:७; उसकी व्यवस्था रोमियों ७:१२,१६
- आत्मिक: यहुवह – यहुन्ना ४:२४; उसकी व्यवस्था – रोमियों ७:२४
- पवित्र: यहुवह – यशायाह ६:३; १पतरस:१:१५ उसकी व्यवस्था – निर्गमन २०:८, रोमियों ७:१२
- जीवन: यहुवह – यहुन्ना १४:६ उसकी व्यवस्था – मत्ती १९:१७
- धार्मिकता: यहुवह – यर्मियाह २३:६ उसकी व्यवस्था – भजन ११९:१७२
- सम्पूर्ण: यहुवह – मत्ती ५:४८; उसकी व्यवस्था – याकूब १:२५
- शाश्वत: यहुवह – यहुन्ना ८:३५ उसकी व्यवस्था – भजन १११:७,८
- शांति: यहुवह - यशायाह ९:६; उसकी व्यवस्था – भजन ११९:१६५
- मार्ग: यहुशुआ – यहुन्ना १४:६; उसकी व्यवस्था – भजन ११९:३०-३२
- अचूक: यहुवह – २तिमुथियुस २:१९ उसकी व्यवस्था – भजन १९:७,१११:७,८
- अपरिवर्ती यहुवह – मलाकी ३:६; उसकी व्यवस्था - भजन १११:७,८
- मधुर यहुवह – भजन ३४:८; उसकी व्यवस्था - भजन १९:१०,११९:१०३
- विवेकी यहुवह – भजन १११:१० उसकी व्यवस्था – भजन १९:७
- हमारा चिन्तन यहुवह – भजन ६३:६; उसकी व्यवस्था – भजन १:२
- न्यायी यहुवह – भजन ५०:६; उसकी व्यवस्था – याकूब २:१२
- ज्ञानोदय यहुवह – भजन १८:२७: उसकी व्यवस्था – भजन १९:८
- प्रेम यहुवह – १यहुन्ना ४:७,८: उसकी व्यवस्था – रोमियों १३:८-१०
- निर्मल यहुवह – भजन १९:९; उसकी व्यवस्था –
- आशीषित यहुवह – भजन २८:६; उसकी व्यवस्था – निर्गमन २०:११
- हर्ष यहुवह – भजन ३७:४; उसकी व्यवस्था – भजन १:२
- आश्चर्यजनक यहुवह – भजन ९:६; उसकी व्यवस्था – भजन ११९:१८
- स्वतन्त्रता यहुवह – यशायाह ६१:१; उसकी व्यवस्था – याकूब १:२५, भजन ११९:४५
- ढाढस यहुवह – भजन २३:४; उसकी व्यवस्था – भजन ११९:५०
- हमारा गीत यहुवह – प्रकाशितवाक्य १५:३; उसकी व्यवस्था – भजन ११९:५४
- दयालु यहुवह – निर्गमन ३४:५; उसकी व्यवस्था – भजन ११९:५८
- ज्ञान यहुवह – यशायाह ११:२; ; उसकी व्यवस्था – भजन ११९:६६
- आशा यहुवह – भजन १३०:७; ; उसकी व्यवस्था – भजन ११९:७४
- जीवन यहुवह – भजन ३६:९; ; उसकी व्यवस्था – नीतिवचन ३:१२
- शब्द यहुवह – नीतिवचन ८:१३,१४: उसकी व्यवस्था – भजन ११९:८०
- समझ यहुवह - भजन १४७:५; उसकी व्यवस्था – भजन ११९:९९
- प्रसन्नता यहुवह – भजन १४६:५; उसकी व्यवस्था – नीतिवचन २९:१८
- आनन्द यहुवह – भजन १६:११; उसकी व्यवस्था – भजन ११९:१६२
“यह न समझो, की मैं व्यवस्था या भविष्यवक्ताओं की पुस्तकों का लोप करने आया हूँ, लोप करने नहीं परन्तु पूरा करने आया हूँ”. (मत्ती ५:१७)
“ धन्य हैं वे, जो अपने वस्त्र धो लेते हैं, क्योंकि उन्हें जीवन के वृक्ष के पास आने का अधिकार मिलेगा, और वे फाटकों से होकर नगर में प्रवेश करेंगे”. (प्रकाशितवाक्य २२:१४). [नया यरूशलेम]