धर्मशास्त्र लोगों के एक बहुत ही अधिक विशेष समूह को प्रस्तुत करता है जो अपने सृष्टिकर्ता का आदर उसके पवित्र सब्त पर उसकी उपासना द्वारा करते हैं जबकि शेष संसार इसका तिरस्कार करता है. ये सादोक के पुत्र कहलाते हैं. सादोक के पुत्र अनूठे हैं. उन्होंने अपने जीवनों को यहुवाह को ऐसे समर्पित कर दिया है की उनकी इच्छा उसकी इच्छा में समाहित हो गई हैं. उनके जीवन पवित्र प्रतिबिम्ब को पूर्णत: दर्शाते हैं. सादोक के पुत्र जैसा यहुवाह निर्देशित करता है वैसे ही पहनते, बात-चीत करते और कार्य करते हैं. वे उसके हैं और वह उनका है. जब वे अपने पड़ोसी की सेवा करते हैं, एक बहुत ही विशेष अर्थ में, सादोक के पुत्र यहुवाह की सेवा करते हैं.
“फिर लेवीय याजक जो सादोक की सन्तान हैं . . . वे मेरी सेवा करने को मेरे समीप आया करें . . . परमेश्वर यहुवाह की यही वाणी है. वे मेरे पवित्र स्थान में आया करें, और मेरी मेज के पास मेरी सेवा टहल करने को आएँ और मेरी वस्तुओं की रक्षा करें.
“जब कोई मुकद्धमा हो तब न्याय करने को भी वे ही बैठें, और मेरे नियमों के अनुसार न्याय करें. मेरे सब नियत पर्बों के विषय भी वे मेरी व्यवस्था और विधियों का पालन करें और मेरे सब्त को पवित्र मानें.” (यहेजकेल ४४: १४-१६,२४)
सादोक के पुत्रों के लिए बड़ी बुलाहट है. हमेशा ही ऐसे लोग बहुत थोड़े ही रहे हैं जो संपूर्ण रूप से सर्वोच्च को समर्पित हैं, वे शाश्वत के साथ एक हैं. वचन जो वे बोलते हैं और कार्य जो वे करते है, उसकी जिससे वे प्रेम करते और सेवा करते हैं के विचार और भावनाओं का प्रकाशन है. इतनी ऊँची नियति के लिए एक विशेष तैयारी की आवश्यकता है. यह प्रशिक्षण सांसारिक विश्वविधालयों में नहीं पाया जा सकता. न ही कोई बाइबल स्कूल भी ठीक तरह से यह सिखा सकता है की कौन सादोक के बेटे-बेटियाँ होंगे.
प्रत्येक स्त्री पुरुष और बच्चे जो अपने आप को महापवित्र को समर्पित करते हैं स्वर्गीय संरक्षण में आ जाते हैं. यहुवाह स्वयं उनके जीवन के अनुभवों को निर्देशित करता है जो यहुवाह की सेवकाई के बड़े कार्यो के लिए उनके चरित्र को बनाता है. सादोक के पुत्र और पुत्रियों का जीवन सम्पन्न होता है, संतोषप्रद, आत्मिक वरदानों से भरा हुआ. . .परन्तु यह एक बहुत सी निराला आचरण होता है. मूसा ने यहुवाह का प्रवक्ता होने के पहले निर्जन प्रदेश में ४० वर्ष बिताए. स्वर्गीय स्कूल में इन ४० वर्षो की ट्रेनिंग ने उसे उसके जीवन के महान कार्य के लिए तैयार किया. मूसा का स्वर्ग में बहुत आदर किया गया. जब उसने यहुवाह का मुख देखना चाहा, सर्वशक्तिमान का शालीनता से प्रत्युत्तर था:
“मैं तेरे सम्मुख होकर चलते हुए तुझे अपनी सारी भलाई दिखाऊंगा ....परन्तु ... तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता. ...सुन मेरे पास एक स्थान है यहाँ तू उस चट्टान पर खड़ा हो...और जब तक मेरा तेज तेरे सामने हो के चलता रहे, तब तक मैं तुझे चट्टान की दरार में रखूँगा और जब तक मैं तेरे सामने से होकर न निकल जाऊ तब तक अपने हाथ से तुझे ढाँपे रहूँगा. फिर मैं अपना हाथ उठा लूँगा, तब तू मेरी पीठ का तो दर्शन पाएगा; परन्तु मेरे मुख का दर्शन नहीं मिलेगा.” (निर्गमन ३३:१८-२३)
यहुवाह में सादोक के पुत्र से यह कहा:
“यदि तुम में कोई नबी हो तो उस पर मैं यहुवाह दर्शन के द्वारा अपने आप को प्रगट करूँगा; या स्वप्न में उससे बातें करूँगा. परन्तु मेरा दास मूसा ऐसा नहीं है; वह तो मेरे सब घरानों में विश्वासयोग्य है. उससे मैं गुप्त रीति से नहीं, परन्तु आमने-सामने और प्रत्यक्ष होकर बातें करता हूँ; और वह यहुवाह का स्वरूप निहारने पाता है.” (गिनती १२:६-८)
उस बड़ी बुलाहट के लिए मूसा की तैयारी मिस्त्र के रायल कोर्ट में संसार के सर्वोत्तम शिक्षा विदों के द्वारा नहीं हुई. यह मरुस्थल के निराले बंजर स्थान में प्राप्त हुई, जहाँ उसकी आत्मा उसके बनाने वाले के साथ आमने-सामने बातचीत कर रही थी. यही वह तैयारी है जो उन सभी के लिए आवश्यक है जो सादोक के पुत्र होंगे. यह संसार के आदर से या कलीसिया के आसनों पर विराजमान प्रशनयोग्य सहभागिता रखने वाले जो की यहुवाह के लिए जीने के लिए पूर्णत: समर्पित नहीं है, से दूर एक विशेष एकाकी राह है.
वे सभी जो अपने आप को पूर्णतया यहुवाह को समर्पित करते हैं, पवित्र व्यवस्था की सभी तफसील चौथी आज्ञा सब्त का पालन करने में आज्ञाकारी रहेंगे. इस बिंदु पर जल्द से जल्द आज्ञाकारिता पेश की जाती है, तौभी प्रत्येक को अकेला ही खड़ा रहना होता है. सातवाँ दिन सब्त की गणना केवल प्राचीन चन्द्र-सौर कैलेन्डर के उपयोग के द्वारा ही की जा सकती है. यह पुरोहितों, पासतरों, दोस्तों और परिवार में एक समान नितांत अलोकप्रिय है. वे सभी जो सृष्टिकर्ता के
उस बड़ी बुलाहट के लिए मूसा की तैयारी मिस्त्र के रायल कोर्ट में संसार के सर्वोत्तम शिक्षा विदों के द्वारा नहीं हुई. यह मरुस्थल के निराले बंजर स्थान में प्राप्त हुई जहाँ उसकी आत्मा उसके बनाने वाले के साथ आमने-सामने बातचीत कर रही थी. |
जब एक मनुष्य जिसे सुन्दर रंगीन काँच की खिडकियों के नीचे प्रेरणादायक उपदेश सुनने,
और ऊँचा संगीत सुनने की आदत हो उसे झील का किनारा कुछ कम “उपासनापूर्ण” प्रतीत होगा. जब एक स्त्री को चर्च सर्विस के बाद डिनर में भाग लेने, बच्चों के सब्त स्कूल में पढ़ाने, और प्रार्थना सभाओं में भाग लेने की आदत हो जाती है, तब अपने बेडरूम में एकाकी उपासना जबरदस्त एकाकी लगती है. मनुष्यों के द्वारा बनाई गई उपासना की आदतें आवश्यक नहीं है की सृष्टिकर्ता को गौरवान्वित करें. भीड़ से भरी हुई कलीसिया के सामने सुन्दरता से गाया गया गीत यहुवाह के कानों तक नहीं पहुँचता यदि वह स्व-प्रशंसा से भरा हो. साधारण गीत जो अकेले किसी के अपने घर में एकांत में गाया गया हो, यदि समर्पित प्रेमी हृदय से प्रवाहित हुआ है तो, यहुवाह की आशीषों को पाता है. स्वर्गदूत, ऐसे गीत को सुनकर, अपनी आवाजों को उस नम्र विश्वासी के साथ मिला देते है और कोरस एक बड़े राग को दुहराने के द्वारा स्वर्ग के कोनेकोने में गूंजते हुए और महिमा को लाते हुए अपने प्रिय को आदर देते हुए उमड़ पड़ता है.
इस पेशोपेश में मत पड़िए की आपकी एकांत में की गई उपासना किसी भी प्रकार उससे जबकि आप सैकड़ों के साथ घुटने टेक रहे हैं या गा रहे हैं से यहुवाह के समक्ष कम मूल्य की है. यह व्यक्तिगत हृदय है जो यहुवाह को ग्रहण करता है, और वह व्यक्तिगत रूप से उस व्यक्ति के पास आता है. धर्मशास्त्र उन सभों के लिए जो अकेले उपासना करते हैं आशा प्रदान करता है:
“जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकठ्ठा होते हैं. वहाँ मैं उनके बीच में होता हूँ.” (मत्ती १८:२०)
यह उन्हें अलग नहीं करता जिनके पास दूसरा व्यक्ति नहीं है जिसके साथ वे उपासना कर सकें. यहुवाह स्वर्गदूतों को नियुक्त करता है जो अपने धरती से जुड़े पुत्रों के संरक्षण के लिए उनके साथ कदम से कदम मिला कर चलते हैं. यहुशुआ ने इन व्यक्तिगत संरक्षक स्वर्गदूतों के बारे में संदर्भित किया जबकि उसने सावधान किया कि:
“देखो तुम इन छोटों में से किसी को तुच्छ न जानना, क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ की स्वर्ग में इनके दूत मेरे स्वर्गीय पिता का मुँह सदा देखते हैं.” (मत्ती १८:१०)
स्वर्गदूत यहुवाह के बच्चों के साथ जंगल मार्ग में, बालू के किनारों पर, या एक शांत कमरे में सदा साथ रहते हैं.
“क्या वे सब (स्वर्गदूत) सेवा-टहल करने वाली आत्माएं नहीं, जो उद्धार पाने वालों के लिए सेवा करने को भेजी जाती हैं.” (इब्रानियों १:१४)
एक विनम्र होम चर्च, बहुतों या एक के साथ, उनके लिये जो विश्वास की बहुतायत के साथ उसमे रहते हैं एक महल के समान प्रतीत होता है. क्योंकि सच्ची उपासना एक भक्तिपूर्वक कार्य है जो प्रेम और कृतज्ञता से भरे हृदय से उत्पन्न होता है, वास्तव में एकांत में उपासना करना लापरवाह और उदासीन लोगों के साथ की तुलना में अधिक आसान है. धर्मशास्त्र किस प्रकार उपासना होनी चाहिए आज्ञा नहीं देता है. कुछ भी जो मन और मस्तिष्क को अपने बनाने वाले के प्रेम औए निष्ठा में लाता है उपासना किये जाने के लिए स्वीकार्य है.
“सब्त का दिन मनुष्य के लिए बनाया गया है न कि मनुष्य सब्त के लिए.” (मरकुस २:२७)
सहर्ष नई चीजों को अपनी उपासना के लिए आजमाइए. जो एक भीड़ के लिए सम्भव है वह एक परिवार या एक व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं भी हो सकता है. हालाँकि यह हृदय पर प्रभाव को कमजोर नहीं करता है और नाही यह यहुवाह को कम ग्रहण योग्य है सिर्फ इसलिए कि यह एक व्यक्ति या परिवार से होती है बजाय इसके की एक भीड़ भरे चर्च के द्वारा. यथासम्भव पवित्र समय को प्रकृति में व्यतीत करें. यह उन महान मार्गों में से एक होगा जो हृदय को ऊपर स्वर्ग की ओर उठाएगा.
एलिय्याह सादोक का एक अन्य पुत्र था जिसने स्वर्गीय स्कूल में अपने जीवन के कार्य की तैयारी में एकाकी जीवन व्यतीत किया. यहुवाह ने व्यक्तिगत रूप से उसे निर्देशित किया कि वह जो ऊँचा और उत्कृष्ट है जो अनन्त में निवास करता है वह अन्धी, भूकम्प, या आग में नहीं पाया जाता. ना ही बड़े हुल्लड़ या अशांत कार्य के द्वारा मनुष्य की सहभागिता पवित्रता के साथ हो सकती है. यहुवाह ने एलिय्याह से “दबे हुए धीमे शब्द” से कहा (१ राजा १९:१२) इस प्रकार की दबी और धीमी आवाज सुनी नहीं जा सकती जब उपासना परम्पराओं के नीचे दफन हो या दूसरों की अपेक्षाओं से बंधी हो. यह आधुनिक समाज के हो-हल्ले से बहुत दूर है, अविश्वासियों के मन बहलाव से दूर है, ताकि हृदय परमप्रिय की आवाज को अच्छे से सुन सके. विश्व के सृष्टिकर्ता के साथ सहभागिता के ये क्षण, ही हैं जो सादोक के पुत्र और पुत्रियों को तैयार करते हैं की वे स्वर्ग के राज्य की गवाही देने के लिए पृथ्वी पर स्थिर रहें.
यहुशुआ ने स्वयं भी उनके लिए जो सर्वशक्तिमान के समक्ष एक शांत एकाकी उपासना में झुकते हैं बड़े आत्मिक प्रतिफल को संदर्भित किया है. “परन्तु जब तू प्रार्थना करे तो अपनी कोठरी में जा; और द्वार बन्द कर के अपने पिता से जो गुप्त में है प्रार्थना कर तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा.”(मत्ती ६:६)
अपने पिता को जो स्वर्ग में है अपनी स्तुति और प्रार्थनाओं को चढाएँ. उसके आपके लिए प्रेम के आश्वासन में, उसके द्वारा आपकी उपासना को ग्रहण करने में विश्राम करें.
अत: अब जो यहुशुआ में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं. क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते हैं. (रोमियो ८:१)
सृष्टिकर्ता की उपासना आत्मा और सच्चाई से उसके पवित्र सब्त के दिनों में करिये. वह आपको प्रेम करता है एक ऐसे प्रेम के साथ जो आपको कभी अलग नहीं होने देगा. आपकी साधारण और एकाकी उपासना जो संसारिकता से दूर है उसकी दृष्टि में ग्रहण योग्य है.
उसके वचन आपको निमन्त्रण दे रहे हैं:
“हे मेरी प्रिय, हे मेरी सुन्दरी, उठकर चली जा; हे मेरे प्रेमी, आ, हम खेतों में निकल जाएँ और गावों में रहें; फिर सबेरे उठकर दाख की बारियों में चलें,...वहाँ मैं तुमको अपना प्रेम दिखाउंगी.” श्रेष्ठगीत (२:१०,७:११,१२)
धर्मशास्त्र लोगों के एक बहुत ही अधिक विशेष समूह को प्रस्तुत करता है जो अपने सृष्टिकर्ता का आदर उसके पवित्र सब्त पर उसकी उपासना द्वारा करते हैं जबकि शेष संसार इसका तिरस्कार करता है. ये सादोक के पुत्र कहलाते हैं. सादोक के पुत्र अनूठे हैं. उन्होंने अपने जीवनों को यहुवाह को ऐसे समर्पित कर दिया है की उनकी इच्छा उसकी इच्छा में समाहित हो गई हैं. उनके जीवन पवित्र प्रतिबिम्ब को पूर्णत: दर्शाते हैं. सादोक के पुत्र जैसा यहुवाह निर्देशित करता है वैसे ही पहनते, बात-चीत करते और कार्य करते हैं. वे उसके हैं और वह उनका है. जब वे अपने पड़ोसी की सेवा करते हैं, एक बहुत ही विशेष अर्थ में, सादोक के पुत्र यहुवाह की सेवा करते हैं.
“फिर लेवीय याजक जो सादोक की सन्तान हैं . . . वे मेरी सेवा करने को मेरे समीप आया करें . . . परमेश्वर यहुवाह की यही वाणी है. वे मेरे पवित्र स्थान में आया करें, और मेरी मेज के पास मेरी सेवा टहल करने को आएँ और मेरी वस्तुओं की रक्षा करें.
“जब कोई मुकद्धमा हो तब न्याय करने को भी वे ही बैठें, और मेरे नियमों के अनुसार न्याय करें. मेरे सब नियत पर्बों के विषय भी वे मेरी व्यवस्था और विधियों का पालन करें और मेरे सब्त को पवित्र मानें.” (यहेजकेल ४४: १४-१६,२४)
सादोक के पुत्रों के लिए बड़ी बुलाहट है. हमेशा ही ऐसे लोग बहुत थोड़े ही रहे हैं जो संपूर्ण रूप से सर्वोच्च को समर्पित हैं, वे शाश्वत के साथ एक हैं. वचन जो वे बोलते हैं और कार्य जो वे करते है, उसकी जिससे वे प्रेम करते और सेवा करते हैं के विचार और भावनाओं का प्रकाशन है. इतनी ऊँची नियति के लिए एक विशेष तैयारी की आवश्यकता है. यह प्रशिक्षण सांसारिक विश्वविधालयों में नहीं पाया जा सकता. न ही कोई बाइबल स्कूल भी ठीक तरह से यह सिखा सकता है की कौन सादोक के बेटे-बेटियाँ होंगे.
प्रत्येक स्त्री पुरुष और बच्चे जो अपने आप को महापवित्र को समर्पित करते हैं स्वर्गीय संरक्षण में आ जाते हैं. यहुवाह स्वयं उनके जीवन के अनुभवों को निर्देशित करता है जो यहुवाह की सेवकाई के बड़े कार्यो के लिए उनके चरित्र को बनाता है. सादोक के पुत्र और पुत्रियों का जीवन सम्पन्न होता है, संतोषप्रद, आत्मिक वरदानों से भरा हुआ. . .परन्तु यह एक बहुत सी निराला आचरण होता है. मूसा ने यहुवाह का प्रवक्ता होने के पहले निर्जन प्रदेश में ४० वर्ष बिताए. स्वर्गीय स्कूल में इन ४० वर्षो की ट्रेनिंग ने उसे उसके जीवन के महान कार्य के लिए तैयार किया. मूसा का स्वर्ग में बहुत आदर किया गया. जब उसने यहुवाह का मुख देखना चाहा, सर्वशक्तिमान का शालीनता से प्रत्युत्तर था:
“मैं तेरे सम्मुख होकर चलते हुए तुझे अपनी सारी भलाई दिखाऊंगा ....परन्तु ... तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता. ...सुन मेरे पास एक स्थान है यहाँ तू उस चट्टान पर खड़ा हो...और जब तक मेरा तेज तेरे सामने हो के चलता रहे, तब तक मैं तुझे चट्टान की दरार में रखूँगा और जब तक मैं तेरे सामने से होकर न निकल जाऊ तब तक अपने हाथ से तुझे ढाँपे रहूँगा. फिर मैं अपना हाथ उठा लूँगा, तब तू मेरी पीठ का तो दर्शन पाएगा; परन्तु मेरे मुख का दर्शन नहीं मिलेगा.” (निर्गमन ३३:१८-२३)
यहुवाह में सादोक के पुत्र से यह कहा:
“यदि तुम में कोई नबी हो तो उस पर मैं यहुवाह दर्शन के द्वारा अपने आप को प्रगट करूँगा; या स्वप्न में उससे बातें करूँगा. परन्तु मेरा दास मूसा ऐसा नहीं है; वह तो मेरे सब घरानों में विश्वासयोग्य है. उससे मैं गुप्त रीति से नहीं, परन्तु आमने-सामने और प्रत्यक्ष होकर बातें करता हूँ; और वह यहुवाह का स्वरूप निहारने पाता है.” (गिनती १२:६-८)
उस बड़ी बुलाहट के लिए मूसा की तैयारी मिस्त्र के रायल कोर्ट में संसार के सर्वोत्तम शिक्षा विदों के द्वारा नहीं हुई. यह मरुस्थल के निराले बंजर स्थान में प्राप्त हुई, जहाँ उसकी आत्मा उसके बनाने वाले के साथ आमने-सामने बातचीत कर रही थी. यही वह तैयारी है जो उन सभी के लिए आवश्यक है जो सादोक के पुत्र होंगे. यह संसार के आदर से या कलीसिया के आसनों पर विराजमान प्रशनयोग्य सहभागिता रखने वाले जो की यहुवाह के लिए जीने के लिए पूर्णत: समर्पित नहीं है, से दूर एक विशेष एकाकी राह है.
वे सभी जो अपने आप को पूर्णतया यहुवाह को समर्पित करते हैं, पवित्र व्यवस्था की सभी तफसील चौथी आज्ञा सब्त का पालन करने में आज्ञाकारी रहेंगे. इस बिंदु पर जल्द से जल्द आज्ञाकारिता पेश की जाती है, तौभी प्रत्येक को अकेला ही खड़ा रहना होता है. सातवाँ दिन सब्त की गणना केवल प्राचीन चन्द्र-सौर कैलेन्डर के उपयोग के द्वारा ही की जा सकती है. यह पुरोहितों, पासतरों, दोस्तों और परिवार में एक समान नितांत अलोकप्रिय है. वे सभी जो सृष्टिकर्ता के सब्त पर उसकी उपासना के दायित्व को अस्वीकार करते हैं, वे उनके विरुद्ध जो आज्ञापालन करते है उठ खड़े होंगे. यह हमेशा ही उनके जो यहुवाह की सेवा करते और नहीं करते के बीच होता है. परिणामस्वरूप आधुनिक सादोक के पुत्रों को उनके समय पूर्व भाई-बहनों के समान एकांत में उपासना करना चाहिए. पहले पहल यह गलत महसूस होगा.
जब एक मनुष्य जिसे सुन्दर रंगीन काँच की खिडकियों के नीचे प्रेरणादायक उपदेश सुनने,
और ऊँचा संगीत सुनने की आदत हो उसे झील का किनारा कुछ कम “उपासनापूर्ण” प्रतीत होगा. जब एक स्त्री को चर्च सर्विस के बाद डिनर में भाग लेने, बच्चों के सब्त स्कूल में पढ़ाने, और प्रार्थना सभाओं में भाग लेने की आदत हो जाती है, तब अपने बेडरूम में एकाकी उपासना जबरदस्त एकाकी लगती है. मनुष्यों के द्वारा बनाई गई उपासना की आदतें आवश्यक नहीं है की सृष्टिकर्ता को गौरवान्वित करें. भीड़ से भरी हुई कलीसिया के सामने सुन्दरता से गाया गया गीत यहुवाह के कानों तक नहीं पहुँचता यदि वह स्व-प्रशंसा से भरा हो. साधारण गीत जो अकेले किसी के अपने घर में एकांत में गाया गया हो, यदि समर्पित प्रेमी हृदय से प्रवाहित हुआ है तो, यहुवाह की आशीषों को पाता है. स्वर्गदूत, ऐसे गीत को सुनकर, अपनी आवाजों को उस नम्र विश्वासी के साथ मिला देते है और कोरस एक बड़े राग को दुहराने के द्वारा स्वर्ग के कोनेकोने में गूंजते हुए और महिमा को लाते हुए अपने प्रिय को आदर देते हुए उमड़ पड़ता है.
इस पेशोपेश में मत पड़िए की आपकी एकांत में की गई उपासना किसी भी प्रकार उससे जबकि आप सैकड़ों के साथ घुटने टेक रहे हैं या गा रहे हैं से यहुवाह के समक्ष कम मूल्य की है. यह व्यक्तिगत हृदय है जो यहुवाह को ग्रहण करता है, और वह व्यक्तिगत रूप से उस व्यक्ति के पास आता है. धर्मशास्त्र उन सभों के लिए जो अकेले उपासना करते हैं आशा प्रदान करता है:
“जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकठ्ठा होते हैं. वहाँ मैं उनके बीच में होता हूँ.” (मत्ती १८:२०)
यह उन्हें अलग नहीं करता जिनके पास दूसरा व्यक्ति नहीं है जिसके साथ वे उपासना कर सकें. यहुवाह स्वर्गदूतों को नियुक्त करता है जो अपने धरती से जुड़े पुत्रों के संरक्षण के लिए उनके साथ कदम से कदम मिला कर चलते हैं. यहुशुआ ने इन व्यक्तिगत संरक्षक स्वर्गदूतों के बारे में संदर्भित किया जबकि उसने सावधान किया कि:
“देखो तुम इन छोटों में से किसी को तुच्छ न जानना, क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ की स्वर्ग में इनके दूत मेरे स्वर्गीय पिता का मुँह सदा देखते हैं.” (मत्ती १८:१०)
स्वर्गदूत यहुवाह के बच्चों के साथ जंगल मार्ग में, बालू के किनारों पर, या एक शांत कमरे में सदा साथ रहते हैं.
“क्या वे सब (स्वर्गदूत) सेवा-टहल करने वाली आत्माएं नहीं, जो उद्धार पाने वालों के लिए सेवा करने को भेजी जाती हैं.” (इब्रानियों १:१४)
एक विनम्र होम चर्च, बहुतों या एक के साथ, उनके लिये जो विश्वास की बहुतायत के साथ उसमे रहते हैं एक महल के समान प्रतीत होता है. क्योंकि सच्ची उपासना एक भक्तिपूर्वक कार्य है जो प्रेम और कृतज्ञता से भरे हृदय से उत्पन्न होता है, वास्तव में एकांत में उपासना करना लापरवाह और उदासीन लोगों के साथ की तुलना में अधिक आसान है. धर्मशास्त्र किस प्रकार उपासना होनी चाहिए आज्ञा नहीं देता है. कुछ भी जो मन और मस्तिष्क को अपने बनाने वाले के प्रेम औए निष्ठा में लाता है उपासना किये जाने के लिए स्वीकार्य है.
“सब्त का दिन मनुष्य के लिए बनाया गया है न कि मनुष्य सब्त के लिए.” (मरकुस २:२७)
सहर्ष नई चीजों को अपनी उपासना के लिए आजमाइए. जो एक भीड़ के लिए सम्भव है वह एक परिवार या एक व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं भी हो सकता है. हालाँकि यह हृदय पर प्रभाव को कमजोर नहीं करता है और नाही यह यहुवाह को कम ग्रहण योग्य है सिर्फ इसलिए कि यह एक व्यक्ति या परिवार से होती है बजाय इसके की एक भीड़ भरे चर्च के द्वारा. यथासम्भव पवित्र समय को प्रकृति में व्यतीत करें. यह उन महान मार्गों में से एक होगा जो हृदय को ऊपर स्वर्ग की ओर उठाएगा.
एलिय्याह सादोक का एक अन्य पुत्र था जिसने स्वर्गीय स्कूल में अपने जीवन के कार्य की तैयारी में एकाकी जीवन व्यतीत किया. यहुवाह ने व्यक्तिगत रूप से उसे निर्देशित किया कि वह जो ऊँचा और उत्कृष्ट है जो अनन्त में निवास करता है वह अन्धी, भूकम्प, या आग में नहीं पाया जाता. ना ही बड़े हुल्लड़ या अशांत कार्य के द्वारा मनुष्य की सहभागिता पवित्रता के साथ हो सकती है. यहुवाह ने एलिय्याह से “दबे हुए धीमे शब्द” से कहा (१ राजा १९:१२) इस प्रकार की दबी और धीमी आवाज सुनी नहीं जा सकती जब उपासना परम्पराओं के नीचे दफन हो या दूसरों की अपेक्षाओं से बंधी हो. यह आधुनिक समाज के हो-हल्ले से बहुत दूर है, अविश्वासियों के मन बहलाव से दूर है, ताकि हृदय परमप्रिय की आवाज को अच्छे से सुन सके. विश्व के सृष्टिकर्ता के साथ सहभागिता के ये क्षण, ही हैं जो सादोक के पुत्र और पुत्रियों को तैयार करते हैं की वे स्वर्ग के राज्य की गवाही देने के लिए पृथ्वी पर स्थिर रहें.
यहुशुआ ने स्वयं भी उनके लिए जो सर्वशक्तिमान के समक्ष एक शांत एकाकी उपासना में झुकते हैं बड़े आत्मिक प्रतिफल को संदर्भित किया है. “परन्तु जब तू प्रार्थना करे तो अपनी कोठरी में जा; और द्वार बन्द कर के अपने पिता से जो गुप्त में है प्रार्थना कर तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा.”(मत्ती ६:६)
अपने पिता को जो स्वर्ग में है अपनी स्तुति और प्रार्थनाओं को चढाएँ. उसके आपके लिए प्रेम के आश्वासन में, उसके द्वारा आपकी उपासना को ग्रहण करने में विश्राम करें.
अत: अब जो यहुशुआ में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं. क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते हैं. (रोमियो ८:१)
सृष्टिकर्ता की उपासना आत्मा और सच्चाई से उसके पवित्र सब्त के दिनों में करिये. वह आपको प्रेम करता है एक ऐसे प्रेम के साथ जो आपको कभी अलग नहीं होने देगा. आपकी साधारण और एकाकी उपासना जो संसारिकता से दूर है उसकी दृष्टि में ग्रहण योग्य है.
उसके वचन आपको निमन्त्रण दे रहे हैं:
“हे मेरी प्रिय, हे मेरी सुन्दरी, उठकर चली जा; हे मेरे प्रेमी, आ, हम खेतों में निकल जाएँ और गावों में रहें; फिर सबेरे उठकर दाख की बारियों में चलें,...वहाँ मैं तुमको अपना प्रेम दिखाउंगी.” श्रेष्ठगीत (२:१०,७:११,१२)