याहुवाह का शत्रु, लूसिफर ने सातवे-दिन सब्बात को खोजने के उपयोग में होने वाले कैलेंडर को बदलने के द्वारा सृष्टिकर्ता को योग्य उपासना को चुरा लिया। परंतु सिर्फ यही नहीं जो उसने बदल दिया। लेकिन उसने यह भी बदल दिया कि दिन कब शुरू होता है! आधुनिक २४-घंटे का “दिन” अर्धरात्री पर शुरू होता है। यहूदी और शनिवार-सब्बात के मानने वाले अपना दिन शुक्रवार की सांझ के समय सूर्यास्त पर करते हैं। हालांकि पवित्रशास्त्र से पता चलता है कि दिन कब शुरू होता है और यह न तो अर्धरात्री है न ही सूर्यास्त।
दिन शुरू होता है भोर पर और समाप्त होता है गोधुली पर। रात चन्द्रमा और तारों द्वारा शासित है, इसलिए, दिन शुरू होता है जब तारे गायब हो जाते हैं-ठीक सुर्योदय से पहले और समाप्त होता है सूर्यास्त के बाद जब वे दिखाई देते हैं।
और रात पर प्रभुता करने के लिए चन्द्रमा और तारागण को बनाया, उसकी करुणा सदा की है। भजन संहिता १३६:९
जिसने दिन में प्रकाश देने के लिए सूर्य को और रात में प्रकाश देने के लिए चंद्रमा और तारागण के नियम ठहराए हैं, जो समुद्र को उछालता और उसकी लहरों को गरजाता है और जिसका नाम सेनाओं का एलोह है, वही याहुवाह यों कहता है: यिर्मयाह ३१:३५
रात गोधूलि पर शुरू होती है और समाप्त होती है भोर पर। कैलेंडर की तारीख एक दिन का पर्याय नहीं है। इसके विपरीत, एक कैलेंडर की तारीख में दिन और रात दोनों भी शामिल हैं, लेकिन यह भोर पर शुरू होता है। दिन, कैलेंडर की तारीख की केवल पहली छमाही है, जबकि रात दूसरी छमाही है।
सृष्टि-निर्माण का सप्ताह शुरू हुआ जब सृष्टिकर्ता ने कहा “उजियाला हो” इस दुनिया के पहले सप्ताह का पहला दिन प्रकाश के निर्माण के साथ शुरू हुआ।
...और एलोहीम ने उजियाले को अन्धियारे से अलग किया। और एलोहीम ने उजियाले को दिन और अन्धियारे को रात कहा। तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहला दिन हो गया। (देखिए उत्पत्ति १:४-५)
जब याहुवाह ने उजियाले को अंधियारे से अलग किया, उसने उजियाले को “दिन” कहा, तब उन्होंने परिभाषित किया कि “दिन” दोनों साँझ और भोर से बनाया जा रहा है:
“साँझ और भोर इस प्रकार पहला दिन थे।” (उत्पत्ति १:५ के० जे० वी०)
जब मूसा ने उत्पत्ति की पुस्तक लिखी, उसे “रात” शब्द की कमी नहीं पड़ी। उत्पत्ति में, उन्होंने दिन को परिभाषित करने के लिए परिवर्तन के समय, शाम और सुबह दोनों को शामिल किया। यदि दिन अर्धरात्री या सूर्यास्त पर शुरू हुआ होता तो मूसा ने यह नहीं लिखा होता कि सांझ और भोर दोनों ही दिन के हिस्से थे।
लैव्यव्यवस्था २३:३२ बाइबिल का मुख्य पद है जो “दिन” सूर्यास्त पर शुरू होने के समर्थन के लिए उपयोग किया जाता है:
साँझ से लेकर दूसरी साँझ तक अपना विश्रामदिन माना करना।” (लैव्यव्यवस्था २३:३२)
हांलाकि जब वचन को संदर्भ में पढ़ते हैं, यह स्पष्ट हो जाता है कि इसे हर दिन या यहाँ तक कि सातवें-दिन सब्बात के लिए लागू नहीं किया जा सकता। प्रायश्चित के दिन के बारे में याहुवाह के निर्देशों को लैव्यव्यवस्था २३:२६,३२ सम्मलित करता है। यदि हर दिन साँझ पर शुरू होता तो याहुवाह को प्रायश्चित के दिन को साँझ से पहले शुरू करने के लिए इस्राएलियों को बताने की जरूरत नहीं होती।
"प्रायश्चित का दिन" कैलेंडर की दो तिथियों की समयावधि तक रहता है: नौवीं और दसवीं।
“उसी सातवें महीने का दसवाँ दिन प्रायश्चित का दिन माना जाए;... वह दिन तुम्हारे लिए परमविश्राम का हो, उसमें तुम अपने अपने जीव को दु:ख देना; और उस महीने के नवें दिन की साँझ से लेकर दूसरी साँझ तक अपना विश्रामदिन माना करना।” (लैव्यव्यवस्था २३:२७, ३२)
यदि दिन शाम से शुरू होता, तो मूसा को केवल यह बताया जाता कि: "प्रायश्चित का दिन सातवें महीने का दसवें दिन है।" दिन उजियाले के आगमन पर शुरू होता है। सांझ नौवे दिन को शुरू नहीं करती। न ही सांझ किसी अन्य दिन को शुरू करती है जिसमें सातवाँ-दिन सब्बात भी शामिल है।
सूर्य को दिन पर प्रभुता करने के लिए दिया गया था। दिन उजियाले के आगमन के साथ शुरू होता है और समाप्त हो जाता जब सूर्य को प्रभुता करने के लिए उसके पास ज्यादा प्रकाश नहीं रहता है। कई शताब्दियों बाद मुक्तिदाता ने पुछा: “क्या दिन के बारह घंटे नहीं होते?” (यूहन्ना ११:९) किसी ने भी उनके साथ तर्क-वितर्क नहीं किया! सभी जानते थे कि दिन उजियाले के आगमन के साथ शुरू होता था। दिन के घंटे बारह भागों में समान रूप से विभाजित किए गए थे, जैसे कि एक धूपघड़ी पर देखा जा सकता है। घंटे गर्मियों में लंबे, और सर्दियों में छोटे थे, लेकिन प्रत्येक दिन के केवल १२ घंटे थे।
क्रुसघात, दफनाये जाने, याहुशुआ के पुनरूत्थान की घटना और सुसमाचार में लिखित लेखे-जोखे, दिन के शुरूआत होने के समय को प्रकट करता है।
सब्त के दिन के बाद सप्ताह के पहिले दिन पह फटते ही मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम कब्र को देखने आईं।। (मत्ती २८:१)
सप्ताह का पहला दिन तब तक शुरू नहीं हुआ था जब तक पूर्वी आकाश में प्रकाश नहीं बढ़ने लगा। इसी प्रकार से, क्रुसघात के बाद, सब्बात सूर्यास्त पर शुरू नहीं हुआ। पवित्रशास्त्र स्पष्ट रूप से कहता है कि याजकों और शासकों ने नहीं चाहा की शव सब्बात के दिन क्रूस पर रहे:
इसलिए कि वह तैयारी का दिन था, यहूदियों ने पिलातुस से विनती की कि उनकी टाँगें तोड़ दी जाएँ और वे उतारे जाएँ, ताकि सब्बात के दिन वे क्रूसों पर न रहें, क्योंकि वह सब्बात का दिन बड़ा दिन था। अत: सैनिकों ने आकर उन मनुष्यों में से पहले की टाँगें तोड़ीं तब दूसरे की भी, जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे; परन्तु जब याहुशुआ के पास आकर देखा कि वह मर चुका है, तो उसकी टाँगें न तोड़ीं। (यूहन्ना १९:३१-३३)
आमतौर पर क्रुसघात के द्वारा मृत्यु कई दिन लेती है। पीड़ितों की मृत्यु की रफ्तार को बढ़ाने का पूरा उद्देश्य यह था, कि अगले दिन भोर पर सब्बात के शुरू होने से पहले उन्हें क्रुस पर से उतारा जा सके।
जब साँझ हुई तो यूसुफ नामक अरिमतिया का एक धनी मनुष्य, जो आप ही याहुशुआ का चेला था, आया: उसने पिलातुस के पास जाकर याहुशुआ का शव माँगा। इस पर पिलातुस ने दे देने की आज्ञा दी। यूसुफ ने शव लिया, उसे उज्ज्वल चादर में लपेटा, और उसे अपनी नई कब्र में रखा, जो उसने चट्टान में खुदवाई थी, और कब्र के द्वार पर बड़ा पत्थर लुढ़काकर चला गया। (मत्ती २७:५७-६०)
यह सब काफी लंबा समय लिया!
- यूसुफ पिलातुस के पास गया और शव को मांगा। (मत्ती २८:५८)
- पिलातुस ने विश्वास नहीं किया कि याहुशुआ इतनी जल्दी उस प्रक्रिया से कैसे मर सकता है जिसे आम तौर पर कई दिन लगता है। (मरकुस १५:४४,४५)
- यूसुफ चला गया और दफनाने की चादर ली, गोलगथा लौटे और शव को हटाया। (मरकुस १५:४७)
- निकुदेमुस शव को दफ़नाने की तैयारी के लिए १०० सेर के लगभग गन्धरस और एलवा लेकर पहुँचा। (यूहन्ना १९:४०)
- शव तो यूसुफ की खुद की कब्र में जो पास में ही थी आराम करने के लिए रखा गया था। (मत्ती २७:५९, ६०)
बाईबल आधारित दिन भोर पर शुरू होता है, सूर्य के प्रकाश के पहले किरण के साथ (सूर्योदय से पहले)। |
इस प्रक्रिया में रात-भर का समय लगा! विश्राम दिन "साँझ” पर शुरू नहीं हुआ था, क्योंकि यह बिलकुल वही समय था जब अरमतिया का यूसुफ शव को मांगने के लिए पिलातुस के पास गया!
जब संध्या हो गई तो इसलिए कि तैयारी का दिन था, जो सब्बात के एक दिन पहले होता है, अरिमतिया का रहनेवाला यूसुफ आया, जो महासभा का सदस्य था और आप भी परमेश्वर के राज्य की बाट जोहता था। वह हियाव करके पिलातुस के पास गया और याहुशुआ का शव माँगा। (मरकुस १५:४२,४३)
मुक्तिदाता को दफनाने का काम खत्म हो गया ठीक जैसे ही सब्बात का दिन भोर से शुरू हुआ।
“और उसे [अरमतिया के यूसुफ ने] उतारकर मलमल की चादर में लपेटा, और एक कब्र में रखा, जो चट्टान में खुदी हुई थी; और उसमें कोई कभी न रखा गया था। वह तैयारी का दिन था, और सब्बात का दिन आरम्भ होने पर था।” (लूका २३:५३-५४)
"अनुवादित वाक्यांश ‘drew on (आरम्भ होने पर)’ इस पाठ में, ग्रीक शब्द,...(epiphosko) है। परिभाषा चौंका देने वाली है: 'to begin to grow light: – begin to dawn.' यह #2017, . . . (epiphauo) का एक रूप है, जिसका अर्थ होता है 'उजियाले का बढ़ना . . . भोर का शुरु होना ' क्योंकि उन्होंने शव को उतारने, साफ करने और लपेटने आदि की प्रकिया शुरू करने की अनुमति माँगने के लिए साँझ से रात होने तक इंतजार किया था। यह काम करने के लिए उन्हें रात के घंटे लग गए। उनक यह काम तब तक खत्म नहीं हुआ जब तक सब्बात का दिन शुरू होने के लिए उजियाला न हुआ।” (eLaine Vornholt and L. L. Vornholt-Jones, The Great Calendar Controversy, p. 40.)
उजियाले के बनाने बाद सबसे पहला कार्य जो याहुवाह ने किया वो यह था, उजियाले को अंधियारे से अलग करना। इसके बाद उन्होंने दो भागों को नाम दिया जिन्हें वो अलग किए थे। उजियाले के भाग को उन्होंने “दिन” कहा और अंधियारे के भाग को “रात” कहा। यह पवित्रशास्त्र का सिद्धांत है कि जिसे याहुवाह ने जोड़ा है उसे मनुष्य अलग न करें। (देखिए मरकुस १०:९) इसी तरह, जिसे याहुवाह ने अलग किया है, मनुष्य उसे न मिलाए। दावा करना कि दिन अर्धरात्री या सूर्यास्त पर शुरू होता है, दोनों को मिलाना है जो याहुवाह ने अलग किया है।
लूसिफर ने दावा किया कि वह “समयों और व्यवस्था” को बदल देगा। (दानिय्येल ७:२५)। उपासना का दिन, उस दिन को खोजने के लिए उपयोग होने वाला कैलेंडर और यहाँ तक की दिन कब शुरू होता है को बदलने के द्वारा, उसने उपासना जो न्यायोचित रूप से याहुवाह से संबंधित है उसे चुरा लिया।
त्रुटि और परंपरा से मुक्त होइए। दुनिया भर से सत्य को खोजने वालों की बढ़ती संख्या में शामिल हो जाइऐ जो सच्चे सब्बात के दिन को बहाल कर रहे हैं।
“निश्चय तुम मेरे विश्रामदिनों को मानना, क्योंकि तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में मेरे और तुम लोगों के बीच यह एक चिह्न ठहरा है, जिससे तुम यह बात जान रखो कि याहुवाह हमारा पवित्र करने हारा है।”
(निर्गमन ३१:१३)