मदिरा उपहासक है | क्या मसीहियों को मदिरा पीना चाहिए?
मानव जाती को बनाने में यहुवाह की अदभुत योजना थी कि प्रत्येक
व्यक्ति के मस्तिष्क में वास करे, अपने प्रतिरूप में सृजे गये
प्रत्येक के साथ एक होकर रहे. पाप ने सृष्टिकर्ता की योजना को
नाश कर दिया और आदम और उसके वंशजो की आत्माओं में से
पवित्र प्रतिरूप को विकृत कर दिया. दयालु प्रेमी और दूसरों का
ध्यान करने दूसरों की प्रसन्नता में रूचि के बजाय मनुष्य
एक जाती के रूप में स्वार्थी, आत्मपरायण, स्व-केन्द्रित हो गया.
यहुवाह के मस्तिष्क को शैतान के मस्तिष्क के लिए पूर्णतया परित्यक्त कर दिया गया.
पतित मानवता में पवित्र प्रतिरूप को पुन:स्थापित करने के लिए ही यहुवाह ने अपने एकलौते पुत्र को इस खतरनाक मिशन के लिए भेजा.
अपनी मृत्यु के कुछ ही समय पहले यहुशुआ ने पिता की सर्वश्रेष्ट योजना उनके लिए जो उसकी मृत्यु के द्वारा बचाए जाएँगे प्रगट किया.
मैं केवल इन्हीं [चेलों] के लिए बिनती नहीं करता, परन्तु उनके लिए भी जो इनके वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे. कि वे सब एक हों; जैसा तू हे पिता मुझ में है, और मैं तुझ में हूँ, वैसे ही वे भी हम में हों, जिससे संसार विश्वास करे कि तू ही ने मुझे भेजा है.
वह महिमा जो तूने मुझे दी मैंने उन्हें दी है, कि वे वैसे ही एक हों जैसे कि हम एक हैं, मैं उनमे और तू मुझ में कि वे सिद्ध होकर एक हो जाएँ, और संसार जाने कि तू ही ने मुझे भेजा, और जैसा तू ने मुझ से प्रेम रखा वैसा ही उनसे रखा. (यहुन्ना १७:२०-२३)
आपके लिए पुत्र और पिता का प्रेम संसार के किसी भी प्रेम से बढकर है. वे आपको अपने अन्तरंग सम्बन्धों के नजदीक लाना चाहते हैं; एक सम्बन्ध जो इतना नजदीक हो कि उनके साथ एक होना प्रगट करे.
प्रेरित पौलुस ने सम्भावित नजदीकियों की गहराईयों को यह लिखकर प्रगट किया:
“क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारी देह पवित्र आत्मा का मन्दिर है, जो तुममें बसा हुआ है और तुम्हें यहुकाह की ओर से मिला है; और तुम अपने नहीं हो? क्योंकि दाम देकर मोल लिए गये हो, इसलिए अपनी देह के द्वारा यहुवाह की महिमा करो.” (देखिये १कुरान्थियों ६:१९-२०)
प्रत्येक पाप जो आप करते हो उस एकता और नजदीकी सहभागिता की नाश करता है जो यहुवाह आपके साथ रखना चाहता है. यह असम्भव है कि आप पाप के साथ चिपके रहकर शैतान की सेवा करते रहें और पाप रहित एलोहीम के साथ एक रहें. “कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक से बैर रखेगा और दूसरे से प्रेम रखेगा, वह एक से मिला रहेगा और दूसरे को तुच्छ जानेगा. तुम यहुवाह और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते,” (मत्ती ६:२४)
अल्कोहल का सेवन एक ऐसा क्षेत्र है जिसने कुछ लोगों को भ्रमित कर दिया है. क्योंकि बाइबल में बहुत से धर्मी लोग जिन्होंने यहुवाह से प्रेम किया और उसकी सेवा की के मदिरा-पान का वर्णन है, यह प्रश्न पूछा जाता है कि क्या यह ऐसा कुछ है जो यहुवाह के लोग बिना पाप किये कर सकते हैं?
व्यवस्थाविवरण १४ का उद्धहरण इस साक्ष्य के रूप में कि यहुवाह को मदिरा पीना ग्रहण योग्य है लिया जाता है. इस वाक्यांश में यहुवाह यह स्पष्ट कर रहा है कि एक परिवार जोकि ‘तम्बू’ से बहुत दूर रहता है वार्षिक फसह के लिए उनका दशमांश सरलता पूर्वक लिए जाने के लिए, वे अपने दशमांश को रूपये में परिवर्तित कर सकते हैं ताकि वे उसे अपने साथ लेकर जा सकें, और वहाँ वे अपनी इच्छा से वह खरीद सकें जिससे वे चाहते हैं की उनका फसह विशेष बन जाये.
“बीज की सारी उपज में से जो प्रतिवर्ष खेत में उपजे उसका दशमांश अवश्य करके अलग रखना.
परन्तु यदि वह स्थान जिसको तेरा यहुवाह एलोहीम अपना नाम बनाए रखने के लिए चुन लेगा बहुत दूर हो . . .
तो उसे बेचकर रूपये को बाँध, हाथ में लिए हुए उस स्थान पर जाना जो तेरा यहुवाह एलोहीम चुन लेगा,
और वहाँ गाय-बैल, या भेड़-बकरी, या दाख मधु, या मदिरा, या किसी भांति का वस्तु क्यों न हो, जो तेरा जी चाहे,
उसे उसी रूपये से मोल लेकर अपने घराने समेत अपने यहुवाह एलोहीम के सामने रखकर आनन्द करना.” (देखिये व्यवस्थाविवरण १४:२२-२६)
यहुवाह लोगों के साथ जहाँ वे हैं वहीं कार्य करता है. वह उन्हें जितनी तेजी से वे चल सकते हैं उससे अधिक कभी अगुवाई नहीं करता. करुणा और दया में, प्रत्येक मस्तिष्क की सत्य में अगुवाई वहीं तक की जाती है जहाँ तक वह समझ सके. “इसलिए यहुवाह ने अज्ञानता के समयों पर ध्यान नहीं दिया, पर अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है.” (प्रेरितों १७:३०) जबकि यहुवाह ने अज्ञानता की छूट दिया है उसने हमेशा सभी मनुष्यों को हमेशा धार्मिकता के उच्च स्तर के लिए ही बुलाया. यहाँ तक की उसने विशेष अवसरों पर इस्राएलियों की मदिरा या तेज द्रव्य पीने की इच्छा को स्वीकार किया, और यह कभी इतनी मात्रा में नहीं की मतवालापन हो जावे.
जब मस्तिष्क मतवाला हो जाता है तब वह स्पष्ट नहीं सोच सकता. इस प्रकार, यह असम्भव हो जाता है कि पवित्र आत्मा के शान्त स्पर्श को प्राप्त कर सकें. विश्व का राजा अपने बच्चों के साथ ऊँचा बोल कर दिखावा नहीं करता. जैसा कि एलियाह ने सीखा जब वह होरेब पर्वत पर भाग कर गया था, यहुवाह न वायु में था, न भूकम्प में, नाकि आग में, परन्तु यहुवाह धीमी गम्भीर आवाज में था. कोई भी वस्तु जो चेतना को शून्य कर देती है वह यहुवाह की गम्भीर धीमी आवाज को भी दबा देती है. जब एक व्यक्ति हल्का सा भी मतवाला होता है, उसकी चेतनता क्षीण हो जाती है. वह तर्कसंगत विचार करने की योग्यता खो देता है. एक व्यक्ति के पीये हुए होने के कारण निर्णय की कमी हमेशा पाप होती है. एक व्यक्ति मदिरा के नशे में दूसरों के लिए किये गये गलत और कार्यो के लिए जिम्मेवार होता है.
जब मस्तिष्क नशे में धुत्त होता है तब वह स्पष्ट रूप से सोच-विचार नहीं कर सकता. इस प्रकार इस हालत में पवित्र आत्मा के शान्त स्पर्श को ग्रहण करना असम्भव है. विश्व का महाराजा अपने बच्चों से ऊँचे प्रदर्शन में बात नहीं करता. जैसा कि एलियाह ने जब वह होरेब पर्वत पर भाग गया था सीखा कि यहुवाह न तो हवा में है नाही भूकम्प में और न आग में है. किन्तु यहुवाह एक स्थिर हल्की आवाज में था. कोई भी वस्तु जो इन्द्रियों को सुन्न कर देती है यहुवाह की हल्की आवाज को शान्त कर देती है. जब एक व्यक्ति हल्के से भी नशे में होता है उसकी इन्द्रियाँ क्षीण हो जाती हैं. वह अपनी तर्कसंगत विचार करने की क्षमता को खो देता है. एक व्यक्ति के मदहोश होने के कारण सोच-विचार की जो कमी होती है वह हमेशा पाप का कारण होती है. मदिरा के प्रभाव में होने के कारण दूसरों के साथ किये गये गलत कार्यों के लिए वह व्यक्ति जिम्मेवार होता है.
धर्मशास्त्र मदिरा के मुक्त सेवन के विरोध में चेतावनियों से भरा हुआ है: “दाखमधु ठट्टा करनेवाला और मदिरा हल्ला मचाने वाली है. जो कोई इसके कारण चूक करता है वह बुद्धिमान नहीं.” (नीतिवचन २०:१) क्योंकि मदिरा लत लगाने वाली है, बहुत से लोग जिन्होंने मिलनसार पीने वाले के रूप में शुरुआत की वे अन्त में अनजाने में पियक्कड़ बन गये. मदिरा के परिणामस्वरूप होने वाली वेदना और हाय असंख्य है. नौकरी का खोना, घरों का टूटना, मित्रों और परिवार के सदस्यों का शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार ही केवल स्वर्ग में जाना जाएगा.
सैमसन के जन्म के पहिले जब एक स्वर्गदूत मानोह और उसकी पत्नी के पास भेजा गया था, स्वर्ग की ओर से निर्देश स्पष्ट थे. “इसलिए अब सावधान रह, कि न तो तू दाखमधु या और किसी भांति की मदिरा पिए, और न कोई अशुद्ध वस्तु खाए, क्योंकि तू गर्भवती होगी और तेरे एक बेटा उत्पन्न होगा. और उसके सिर पर छुरा न फिरे, क्योंकि वह जन्म से ही यहुवाह का नाजीर रहेगा; और इस्राएलियों को पलिश्तियों के हाथ से छुड़ाने में वही हाथ लगाएगा.” (न्यायियों १३:४-५)
यह निर्देश गेब्रियल द्वारा ज़करियाह को दुहराया गया जब उसकी पत्नी एलिजाबेथ मसीहा के आगे दौड़ने वाले को जन्म देने वाली थी: “...तू उसका नाम यहुन्ना रखना .... क्योंकि वह यहुवाह के सामने महान होगा; और दाखरस और मदिरा कभी न पीएगा; और अपनी माता कर गर्भ से ही पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाएगा;” (लूका १:१३,१५)
मदिरा का सेवन कभी भी यहुवाह के प्रति सम्पूर्ण और कुल समर्पण के लिए सुसंगत नहीं है. लोग जो nazarite संकल्प लिए हुए रहते हैं, वे अपने इस संकल्प के दौरान मदिरापान नहीं करते ताकि उनके किसी काम से संकल्प न टूट जावे. मदिरा उनके लिए जो पवित्रता की नजदीकी चाहते हैं हमेशा ही दूर की गई है. एक मनुष्य यहाँ तक आगे बढ़ा कि उसने अपने बच्चों को मदिरा से सदा- सदा के लिए दूर रहने के लिए आज्ञा दी! सैंकड़ो वर्षों बाद जब उन्हें मदिरा प्रस्तुत की गई तब उसके वंशजों के उत्तर दिया:
“हम दाखमधु नहीं पीएँगे क्योंकि रेकाब के पुत्र योनादाब ने जो हमारा पुरखा था हमको यह आज्ञा दी थी, ‘तुम कभी दाखमधु न पीना; न तुम; न तुम्हारे पुत्र...न बीज बोना न दाख की बारी लगाना और ... इसलिए हम रेकाब के पुत्र अपने पुरखा योनादाब की बात मानकर, उसकी सारी आज्ञाओं के अनुसार चलते हैं, न तो हम और न हमारी स्त्रियाँ या हमारे पुत्र कभी दाखमधु पीते हैं, ... हम न दाख की बारी, न खेत, और न बीज रखते हैं... और अपने पुरखा योनादाब की बात मानकर उसकी सारी आज्ञाओं के अनुसार काम करते हैं.” (यर्मियाह ३५:६-१०)
जो कोई भी यहुवाह के साथ एक होना चाहता है वह कभी भी मदिरा नहीं पीएगा. वे जो यहुवाह के साथ एक हैं वे उसकी आत्मा से भरे जावेंगे. “ क्या तुम नहीं जानते कि तुम यहुवाह का मन्दिर हो, और यहुवाह का आत्मा तुममें वास करता है; यदि कोई यहुवाह के मन्दिर को नष्ट करेगा तो यहुवाह उसे नष्ट करेगा; क्योंकि यहुवाह का मन्दिर पवित्र है और वह तुम हो.” (१कुरन्थियों ३:१६-१७)
धर्मशास्त्र में अंकित यहुशुआ द्वारा कहे गये अंतिम वचन चेतावनी से भरे हुए हैं: “देख, मैं शीघ्र आने वाला हूँ, और हर एक के काम के अनुसार बदला देने के लिए प्रतिफल मेरे पास है.” (प्रकाशितवाक्य २२:१२) प्रत्येक व्यक्तिगत जीवन की परीक्षा की गई है. गुप्त विचार, छिपे हुए इरादे, सब, विश्व की निगरानी करने वाले के सामने खुले पड़े हुए हैं. प्रत्येक व्यक्ति का ईनाम निर्धारित है. उन सभों के नाम जिन्होंने अपने जीवन को मुक्तिदाता के साथ एक होने के लिए लाया है वे अपने नाम जीवन की पुस्तक में खुदे हुए पाएँगे. इसी प्रकार जो खोये हुए हैं वे अपने दण्ड को अनन्त मृत्यु की पुस्तक के रिकार्ड में पाएँगे. “जो भूमि के नीचे सोए रहेंगे उन में से बहुत से लोग जाग उठेंगे, कितने तो सदा के जीवन के लिए, और कितने नामधराई और सदा तक अत्यन्त घिनौने ठहरने के लिए.” (दानिएल १२:२)
वे सभी जो अनन्तकाल तक जीवित रहेंगे उन्हें न्याय की गम्भीर वास्तविकता का सामना करना पड़ेगा. क्षमा प्राप्त करने के लिए उन्हें पहले पश्चाताप करना होगा और पापों को छोड़ना होगा. यह निश्चित रूप से वह कार्य है जो हृदयों को प्रायश्चित के दिन के लिए तैयार करता है.
प्रायश्चित के दिन का उद्देश्य प्रायश्चित करने वाले पापियों को यहुवाह की एकता में लाना है. यह एक at-ONE-ment होने का समय था. परन्तु पवित्र पिता की एकता में लाने के लिए हृदय की नम्रता और आत्मा को टटोलने की आवश्यकता होती है.
यह अभी भी होता है. जिस प्रकार की प्राचीन इसरायली अपनी आत्मा को दुखी करते थे वैसे ही आज भी उन सभी को जो यहुवाह के साथ एकता चाहते हैं करना चाहिए. प्राचीन इस्राएलियों में से कोई भी प्रायश्चित के दिन की तैयारी के दिनों में मदिरा नहीं पीता था. प्रत्येक को अपना हृदय दुखित करना होता था और यह सुनिश्चित करना होता था कि उनके पाप क्षमा के रास्ते में कोई बाधा तो नहीं आ रही है. वे जो इस प्रकार अपने आत्मा को टटोलने के पवित्र कार्य को नहीं करते थे उन्हें इस्राएल से बाहर कर दिया जाता था.
प्राचीन इस्राएल के लिए पवित्र चेतावनी आत्मिक इस्राएल में गूँजती है:
“उस समय सेनाओं के प्रभु यहुवाह ने रोने-पीटने, सिर मुड़ाने और टाट पहनने के लिए कहा था; परन्तु क्या देखा की हर्ष और आनन्द मनाया जा रहा है, गाय-बैल का घात और भेड़-बकरी का वध किया जा रहा है, मांस खाया और दाखमधु पीया जा रहा है, और कहते हैं ‘आओ खाएँ-पीयें, क्योंकि कल तो हमें मरना है.’ सेनाओं के यहुवाह ने मेरे कान में कहा और अपने मन की बाट प्रगट की, ‘निश्चय तुम लोगों के इस अधर्म का कुछ भी प्रायश्चित तुम्हारी मृत्यु तक न हो सकेगा’ सेनाओं के प्रभु यहुवाह का यही वचन है.” (यशायाह २२:१२-१४)
वे सभी जो अनन्त जीवन की चाह रखते हैं वे मदिरा और अन्य मस्तिष्क को सुन्न करने और पाप की लत को अपने से दूर करेंगे. इस विशिष्ट प्रायश्चित के दिन यहुवाह के साथ एक होना उनका एकमात्र उद्द्शेय होगा. अब यह पूछने का समय नहीं है कि “मैं कम से कम क्या करूं की बचाया जा सकूँ?” लेकिन यह कि “यहुवाह की क्या इच्छा है? हम उसके साथ एक कैसे हो सकते हैं?”
“...तो आओ हर एक रोकने वाली वस्तु और उलझाने वाले पाप को दूर करके वह दौड़ जिसमे हमें दौड़ना है धीरज से दौड़े.” (इब्रानियों १२:१)
आज प्रतिदिन पवित्रता की चाह करें. उस प्रत्येक वस्तु को जो आपके और सृष्टिकर्ता के बीच आती है अपने से अलग करें. यहुवाह के साथ एक हो जाएँ.