Biblical Christian Articles

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सब्त भाग ४ – एकाकी उपासना

धर्मशास्त्र लोगों के एक बहुत ही अधिक विशेष समूह को प्रस्तुत करता है जो अपने सृष्टिकर्ता का आदर उसके पवित्र सब्त पर उसकी उपासना द्वारा करते हैं जबकि शेष संसार इसका तिरस्कार करता है.  इस बिंदु पर जल्द से जल्द आज्ञाकारिता पेश की जाती है, तौभी प्रत्येक को अकेला ही खड़ा रहना होता है. चूँकि सातवाँ दिन सब्त की गणना केवल प्राचीन चन्द्र-सौर कैलेन्डर के उपयोग के द्वारा ही की जा सकती है. यह पुरोहितों, पासतरों, दोस्तों और परिवार में एक समान नितांत अलोकप्रिय है.  वे सभी जो सृष्टिकर्ता के सब्त पर उसकी उपासना के दायित्व को अस्वीकार करते हैं, वे उनके विरुद्ध जो आज्ञापालन करते है उठ खड़े होंगे. यह हमेशा ही उनके जो यहुवाह की सेवा करते और नहीं करते के बीच होता है.

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सब्त | भाग २ – शाश्वत और युगानुयुग

सातवाँ दिन सब्त पवित्र व्यवस्था के रूप में सभी लोगों पर बन्धनकारी है. सारी आज्ञाओं में से कोई और आज्ञा प्राय: निर्भयता से नहीं तोड़ी जाती जैसे की चौथी आज्ञा. 

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सब्त भाग १ | याहुवाह का सारगर्भित व्यक्तित्व

याहुवाह की व्यवस्था उसके व्यक्तित्व, उसके अन्तरतम विचारों और भावनाओं की सम्पूर्ण प्रतिलिपी है. याहुवाह की व्यवस्था शाश्वत है. यह सर्वदा बनी रहेगी.

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नये चाँद का दिन : सृष्टिकर्ता का दान

 नये चाँद का दिन याहुवाह का दान है. इन अन्तिम दिनों में विश्वासी इस विशेष दी की पवित्रता को बनाए रखेंगे. धर्मशास्त्र घोषणा करता है कि नये चाँद का दिन छुटकारा पाए हुओं के द्वारा नई पृथ्वी में अनन्तकाल तक मनाया जाएगा. उन सभों के लिये जो उसकी जिसके पास जीवन की परिपूर्णता है सहभागिता चाहते हैं अकथनीय आनन्द बाट जोह रहा है.

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पौलुस, रोमी और सब्त

साधारणतया रोमियों १४ नये नियम के गलत अर्थ लगाये गए अध्यायों में से एक है. पौलुस के शब्दों को यहाँ तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया है कि याहुवह के सब्त और पर्ब के दिन अब लागू नहीं है, और यह कि वे किसी भी दिन को, कोई भी दिन जब वे अपने काम से विश्राम करें सृष्टिकर्ता की उपासना कर सकते हैं. फिर भी इस अध्याय के सन्दर्भ का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने पर इस विचार की त्रुटि प्रगट होती है. पौलुस ने हमेशा सातवें दिन सब्त और पर्बों का पालन किया और अपने धर्मान्तरित लोगों को भी यही करने के लिए सिखाया!  

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यहुशुआ की मृत्यु : व्यवस्था का लोप?

धर्मशास्त्र हमेशा यह सिखाता है कि पवित्र व्यवस्था शाश्वत है. इसका पालन स्वर्ग और पृथ्वी दोनों में अनन्तकाल तक निरन्तर चलने वाले चक्र में किया जाना चाहिए. यदि बाइबल का कोई सन्दर्भ यह सिध्द करने के लिये उपयोग किया जावे कि व्यवस्था क्रूस पर चढाई जा चुकी है तो यह शैतान के  झूठ को धर्मग्रन्थ के साथ लपेटना है कि पवित्र व्यवस्था का पालन करने की आवश्यकता नहीं है. इफिसियों २;१५ के स्पष्ट और सही अर्थ को तब ही समझा जा सकता है जब इस सन्दर्भ के पूरे अंश को पढ़ा जाए.  

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यहुशुआ की धार्मिकता : पापियों की एकमात्र आशा

पूर्णतया समझी और ग्रहण की गई विश्वास के द्वारा धार्मिकता, पाप रहित जीवन है. जब यहुशुआ के रक्त को विश्वास के द्वारा ग्रहण किया जाता है तब आप उसके साथ क्रूस पर चढ़ाए जाते हैं. तब जैसे वह पुनर्जीवित हुआ वैसे ही विश्वासी आत्मा भी यहुशुआ के साथ नवीनता के जीवन में चलने के लिये पुनर्जीवित को जाती है. यह उसकी धार्मिकता में विश्वास के द्वारा होता है. यह मस्तिष्क की बौद्धिक समझ से कहीं अधिक है. यह एक अनुभव है. यही हमारी एकमात्र आशा है.  

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उद्धार का रहस्य

कभी कभी उपदेशों में कुछ शब्द और वचन पढ़े या सुने जाते है जो स्पष्ट रूप से समझ में नही आते.  विश्वास के द्वारा धार्मिकता एक ऐसा वचन है जो बहुतायत से प्रयोग किया जाता है पर कम समझा जाता है. उन सभी के लिए जो यहुवह के साथ अनन्त जीवन चाहते है यह अत्यंत आवश्यक है की उनको  विश्वास के द्वारा धार्मिकता क्या है इसकी स्पष्ट तथा ठीक ठीक जानकारी हो क्योकि केवल यही एक मार्ग है जिससे उद्धार पाया जा सकता है.  

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